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Karnataka 1st PUC Hindi Textbook Answers Sahitya Vaibhav Chapter 1 बड़े घर की बेटी
बड़े घर की बेटी Questions and Answers, Notes, Summary
I. एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए:
प्रश्न 1.
ठाकुर साहब के कितने बेटे थे?
उत्तर:
ठाकुर साहब के दो बेटे थे।
प्रश्न 2.
बेनीमाधव सिंह अपनी आधी से अधिक संपत्ति किसे भेंट के रूप में दे चुके थे?
उत्तर:
बेनीमाधव सिंह अपनी आधी से अधिक संपत्ति वकीलों को भेंट कर चुके थे।
प्रश्न 3.
ठाकुर साहब के बड़े बेटे का नाम क्या था?
उत्तर:
ठाकर साहब के बड़े बेटे का नाम श्रीकंठ सिंह था।
प्रश्न 4.
श्रीकंठ कब घर आया करते थे?
उत्तर:
श्रीकंठ सिंह शनिवार को घर आया करते थे।
प्रश्न 5.
आनंदी के पिता का नाम लिखिए।
उत्तर:
आनंदी के पिता का नाम भूपसिंह था।
प्रश्न 6.
थाली उठाकर किसने पलट दी?
उत्तर:
लालबिहारी सिंह ने थाली उठाकर पलट दी।
प्रश्न 7.
गौरीपुर गाँव के जमीनदार कौन थे?
उत्तर:
बेनीमाधव सिंह गौरीपुर गाँव के जमीनदार थे।
प्रश्न 8.
किसकी आँखें लाल हो गयी थी?
उत्तर:
श्रीकंठ की आँखे लाल हो गयी थीं।
प्रश्न 9.
बिगड़ता हुआ काम कौन बना लेती हैं?
उत्तर:
बड़े घर की बेटियाँ बिगड़ता हुआ काम बना लेती हैं।
प्रश्न 10.
‘बड़े घर की बेटी’ कहानी के लेखक कौन हैं?
उत्तर:
‘बड़े घर की बेटी’ कहानी के लेखक उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द हैं।
अतिरिक्त प्रश्नः
प्रश्न 11.
बेनीमाधव सिंह किस गाँव के ज़मीनदार थे?
उत्तर:
बेनीमाधव सिंह गौरीपुर गाँव के ज़मीनदार थे।
प्रश्न 12.
ठाकुर साहब के छोटे बेटे का नाम क्या था?
उत्तर:
ठाकुर साहब के छोटे बेटे का नाम लाल बिहारी सिंह था।
प्रश्न 13.
श्रीकंठ सिंह का किसके साथ ब्याह हो गया?
उत्तर:
श्रीकंठ सिंह का ब्याह आनंदी के साथ हो गया।
प्रश्न 14.
कौन स्वभाव से ही दयावती थी?
उत्तर:
आनंदी स्वभाव से ही दयावती थी।
प्रश्न 15.
बुद्धिमान लोग किनकी बातों पर ध्यान नहीं देते?
उत्तर:
बुद्धिमान लोग मूरों की बातों पर ध्यान नहीं देते।
प्रश्न 16.
मुगदर की जोड़ी किसने बनवा दी थी?
उत्तर:
मुगदर की जोड़ी श्रीकंठ ने बनवा दी थी।
II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिएः
प्रश्न 1.
बेनीमाधव सिंह के परिवार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी ‘बड़े घर की बेटी’ जिसके लेखक प्रेमचंद हैं।
बेनीमाधव सिंह गौरीपुर गाँव का जमींदार था। उसके पिता किसी समय बड़े धन धान्य सम्पन्न थे। गाँव में भव्य मंदिर एवं पक्का तालाब बनवाया था जिसकी अब मरम्मत भी मुश्किल थी, कहा जाता है कि कभी उनके दरवाजे पर हाथी झूमता था, आज वहाँ बूढ़ी भैंस थी। उनकी वर्तमान आय एक हजार रुपये वार्षिक से अधिक न थी, आधी से अधिक संपत्ति वकीलों को भेंट कर चुके थे। इनके दो पुत्र थे। बड़े बेटे का नाम श्रीकंठ, छोटे बेटे का नाम लालबिहारी सिंह था। श्रीकंठ अध्ययनशील और मेहनती लड़का था। उसने बी.ए. की डिग्री प्राप्त कर, शहर में नौकरी में लग गया था, साथ ही उसे आयुर्वेद औषधियों में अत्यधिक रूचि भी थी। वह भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता से प्रेरित था जिसके कारण उसका गाँव में बड़ा सम्मान था। लालबिहारी सिंह दोहरे बदन का नौजवान था जो अपने बड़े भाई की तुलना में अधिक रौबीला एवं स्वस्थ था। वह खूब खाता पीता और मस्ती में व्यस्त रहता था। बड़े बेटे की शादी आनंदी से हुई जो एक सुशील, सम्पन्न परिवार की लड़की थी। छोटे बेटे का विवाह एक साधारण जमींदार की लड़की के साथ हुआ।
प्रश्न 2.
आनंदी ने अपने ससुराल में क्या रंग-ढंग देखा?
उत्तर:
आनंदी एक बड़े घर की बेटी थी। वह अपने घर में सभी सुख-सुविधाओं में पली थी। वे सारी सुख-सुविधाएँ यहाँ ससुराल में नहीं थीं। यहाँ न तो बाग-बगीचे थे, न मकान में खिड़की और जमीन पर फर्श। फिर भी आनंदी ने कुछ ही दिनों में अपने आपको इस घर के अनुकूल बना लिया।
प्रश्न 3.
लालबिहारी आनंदी पर क्यों बिगड़ पड़ा?
उत्तर:
एक दिन लालबिहारी सिंह ने माँस पकाने के लिए कहा। आनंदी ने माँस पकाते समय हाँड़ी में जो घी था, वह सब डाल दिया। जब लालबिहारी ने दाल में घी डालने के लिए कहा, तो आनंदी ने कहा कि माँस पकाने में घी खत्म हो गया। इसी कारण लालबिहारी आनंदी पर बिगड़ गया।
प्रश्न 4.
आनंदी बिगड़ता हुआ काम कैसे बना लेती है?
उत्तर:
श्रीकंठ सिंह के छोटे भाई लालबिहारी सिंह के अभद्र व्यवहार से आनंदी क्रोधित हो जाती है। गुस्से में उसने अपने पति से सारी शिकायतें कीं। झगड़ा इतना बढ़ गया कि घर टूटने तक पहुँच गया। तब बिखरते हुए घर को देखकर आनंदी शांत हो जाती है और लालबिहारी को घर छोड़कर जाने से रोक लेती है। इस प्रकार आनंदी बिगड़ते काम को बना लेती है।
प्रश्न 5.
आनंदी का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
आनंदी एक बड़े घर की रूपवान, गुणवान तथा आदर्शवादी महिला है। यद्यपि वह अपने मायके में सुख-सुविधाओं में पली है, फिर भी वह परिस्थितियों के अनुकूल अपने आपको बदल सकती है। वह अपने घर की एकता बनाये रखना चाहती है और बिखरते घर को बचा लेती है। यही उसका बड़प्पन है कि बिगड़ते काम को बना लेती है।
अतिरिक्त प्रश्नः
प्रश्न 6.
श्रीकंठ सिंह के स्वभाव के बारे में लिखिए।
उत्तर:
श्रीकंठ सिंह बेनीमाधव सिंह के बड़े लड़के थे। वैद्यक ग्रंथों पर उनका विशेष प्रेम था। प्राचीन हिंदू सभ्यता का गुणगान उनकी धार्मिकता का प्रधान अंग था। संयुक्त परिवार को वे पसंद करते थे। अंग्रेजी पढ़े होने के बावजूद भी वे अंग्रेजी सामाजिक प्रथाओं के विशेष प्रेमी नहीं थे। दशहरा के उत्सव में वे बड़े उत्साह से भाग लेते थे।
प्रश्न 7.
भूपसिंह का परिचय दीजिए।
उत्तर:
भूपसिंह एक छोटी-सी रियासत के ताल्लुकेदार थे। बड़े उदार-चित्त और प्रतिभाशाली पुरुष थे। उनको एक भी लड़का नहीं था। सात लड़कियां थी। आनंदी उनकी चौथी लड़की थी। उनका विशाल भवन था। एक हाथी, तीन कुत्ते, बाज, बहरी-शिकरे सब थे।
प्रश्न 8.
आनंदी का ब्याह श्रीकंठ सिंह के साथ कैसे हो गया?
उत्तर:
भूपसिंह अपनी चौथी लड़की आनंदी के लिए विवाह देख रहे थे। तभी एक दिन श्रीकंठ सिंह उनके पास नागरी-प्रचार का चंदे का रूपया माँगने आये। भूपसिंह उनके स्वभाव पर रीझ गए और धूमधाम से श्रीकंठ सिंह का आनंदी के साथ ब्याह हो गया।
III. निम्नलिखित वाक्य किसने किससे कहे?
प्रश्न 1.
जल्दी से पका दो, मुझे भूख लगी है।
उत्तर:
यह वाक्य लालबिहारी ने आनंदी से कहा।
प्रश्न 2.
“जिसके गुमान पर भूली हुई हो, उसे भी देखूगा, और तुम्हें भी।”
उत्तर:
यह वाक्य लालबिहारी ने आनंदी से कहा।
प्रश्न 3.
बेटा, बुद्धिमान लोग मूरों की बात पर ध्यान नहीं देते।
उत्तर:
यह वाक्य बेनीमाधव ने श्रीकंठ से कहा।
प्रश्न 4.
लालबिहारी को मैं अब अपना भाई नहीं समझता।
उत्तर:
यह वाक्य श्रीकंठ ने अपने पिता बेनीमाधव सिंह से कहा।
प्रश्न 5.
अब मेरा मुँह नहीं देखना चाहते, इसलिए अब मैं जाता हूँ।
उत्तर:
यह वाक्य लालबिहारी ने आनंदी से कहा।
प्रश्न 6.
भैया, अब कभी मत कहना कि तुम्हारा मुँह न देगा।
उत्तर:
यह वाक्य लालबिहारी ने श्रीकंठ से कहा।
प्रश्न 7.
मुझसे जो कुछ अपराध हुआ क्षमा करना।
उत्तर:
यह वाक्य लालबिहारी ने आनंदी से कहा।
अतिरिक्त प्रश्नः
प्रश्न 8.
“बहू-बेटियों का यह स्वभाव अच्छा नहीं कि मर्दो के मुँह लगे।”
उत्तर:
बेनीमाधव सिंह ने श्रीकंठ से कहा।
प्रश्न 9.
“लाला बाहर खड़े बहुत रो रहे हैं।”
उत्तर:
आनंदी ने अपने पति श्रीकंठ से कहा।
प्रश्न 10.
“इतनी गरम क्यों होती हो, बात तो कहो।”
उत्तर:
श्रीकंठ ने यह वाक्य आनंदी से कहा।
IV. ससंदर्भ स्पष्टीकरण कीजिए:
प्रश्न 1.
अभी परसों घी आया है, इतनी जल्दी उठ गया?
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ की कहानी ‘बड़े घर की बेटी’ से लिया गया है। इसके लेखक मुंशी प्रेमचन्द हैं।
संदर्भ : इस वाक्य को देवर लाल बिहारी अपनी भाभी आनंदी से कहता है।
स्पष्टीकरण : जब लालबिहारी आनन्दी से माँस पकाने को कहता है तो आनन्दी थोड़ा ही घी होने के कारण सारा घी माँस में डाल देती है। जब लालबिहारी आनन्दी से पूछता है कि दाल में घी क्यों नहीं डाला, तो आनन्दी कहती है कि सारा घी खत्म हो गया। गुस्से में लालबिहारी आकर कहता है कि अभि परसों ही घी खरीदकर लाया था इतनी जल्दी खत्म हो गया?
प्रश्न 2.
“स्त्री गालियाँ सह लेती है, मार भी सह लेती है, पर मैके की निंदा उनसे नहीं सही जाती।”
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ की कहानी ‘बड़े घर की बेटी’ से लिया गया है। इसके लेखक मुंशी प्रेमचन्द हैं।
संदर्भ : इस वाक्य में लेखक प्रेमचंद आनंदी के बारे में टिप्पणी करते हुए पाठकों को उसके चरित्र का परिचय करा रहे हैं।
स्पष्टीकरण : दाल में घी न डालने से तथा घी खत्म हो जाने से लालबिहारी ने गुस्से में भला-बुरा कहा और मायकेवालों के बारे में खरी-खोटी बातें सुनायी। इसी से आनंदी को गुस्सा आ गया। क्योंकि स्त्रियाँ सब कुछ सह सकती है, मार भी खा सकती हैं, पर मायके की निंदा नहीं सह सकती।
प्रश्न 3.
“पर तुमने आजकल घर में यह क्या उपद्रव मचा रखा है।”
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ की कहानी ‘बड़े घर की बेटी’ से लिया गया है। इसके लेखक मुंशी प्रेमचन्द हैं।
संदर्भ : इस वाक्य को श्रीकंठ अपनी पत्नी आनंदी से कहता है।
स्पष्टीकरण : श्रीकंठ जब शनिवार को घर पहुंचे तो लालबिहारी ने आनंदी के बारे में सबकुछ बता दिया था। आनंदी के बारे में शिकायतें सुनकर जब श्रीकंठ आनंदी के पास जाता है, तो पूछता है – आजकल यह सब क्या हो रहा है? तुमने क्या उपद्रव मचा रखा है?
प्रश्न 4.
“उससे जो कुछ भूल हुई, उसे तुम बड़े होकर क्षमा करो”
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ की कहानी ‘बड़े घर की बेटी’ से लिया गया है। इसके लेखक मुंशी प्रेमचन्द हैं।
संदर्भ : इस वाक्य को पिता बेनीमाधव सिंह अपने बड़े पुत्र श्रीकंठ से कहते है।
स्पष्टीकरण : लालबिहारी के हाथों अपने स्त्री का अपमान होते देख श्रीकंठ आपे से बाहर हो जाता है। वह अपने पिता बेनीमाधव के सामने अपने क्रोध को प्रकट करता है। बेनीमाधव सिंह अनुभवी आदमी थे। वे इन भावों को ताड़कर अपने बेटे को शांत करने के उद्देश्य से बोलते है कि श्रीकंठ को अपने छोटे भाई को क्षमा करके अपने बड़प्पन का परिचय देना चाहिए।
प्रश्न 5.
“बड़े घर की बेटियाँ ऐसी ही होती हैं। बिगड़ता हुआ काम बना लेती हैं।”
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ की कहानी ‘बड़े घर की बेटी’ से लिया गया है। इसके लेखक मुंशी प्रेमचन्द हैं। ..
संदर्भ : पिता बेनीमाधव सिंह ने अपने पुत्रों के समक्ष यह वाक्य अपनी बहू की प्रशंसा करते हुए कहते हैं।
स्पष्टीकरण : श्रीकंठ और लालबिहारी के बीच वाद-विवाद होने से तथा उनकी आपसी नाराजगी के कारण भाइयों में प्रेम टूटने तथा घर बिखरने की नौबत आ गई। इससे आनंदी अपने गुस्से को छोड़कर, लालबिहारी को रोक लेती है। सब कुछ ठीक हो जाता है। बड़े घर की बेटियाँ. ऐसे ही बिगड़ा काम बना लेती हैं।
अतिरिक्त प्रश्नः
प्रश्न 6.
“मैके के सामने हम लोगों को कुछ समझती ही नहीं।”
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ की कहानी ‘बड़े घर की बेटी’ से लिया गया है जिसके कहानीकार मुंशी प्रेमचन्द जी हैं।
संदर्भ : प्रस्तुत वाक्य लालबिहारी सिंह ने श्रीकंठ सिंह से कहा।
स्पष्टीकरण : श्रीकंठ सिंह शनिवार को जब घर आए तो लालबिहारी ने अपनी भाभी की शिकायत करते हुए कहा कि भैया आप भाभी को जरा समझा देना कि मुँह संभाल कर बातचीत किया करें। जब श्रीकंठ सिंह ने पूछा आखिर बात क्या हुई है, तब लालबिहारी कहता है- आप ही आप उलझ पड़ीं। मैके के सामने हम लोगों को कुछ समझती ही नहीं। वह बड़े घर की बेटी है तो हम भी कोई कुर्मी कहार नहीं हैं।
प्रश्न 7.
“तम्हें मेरी सौगंध, अब एक पग भी आगे न बढ़ाना”
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ की कहानी ‘बड़े घर की बेटी’ से लिया गया है जिसके कहानीकार मुंशी प्रेमचन्द जी हैं।
संदर्भ : प्रस्तुत वाक्य आनंदी लालबिहारी सिंह से कहती है जब लालबिहारी घर छोड़कर जा रहा होता है।
स्पष्टीकरण : लालबिहारी ने देखा कि भैया उस पर क्रोधित हो गए हैं और वे यह सौगन्ध खा चुके हैं कि अब वे लालबिहारी का मुँह तक नहीं देखना चाहते। तब लालबिहारी को भारी ग्लानि हो आती है। वह अपनी भाभी से क्षमा माँगते हुए कहता है- ‘भाभी, भैया से मेरा प्रणाम कह दो। वह मेरा मुँह नहीं देखना चाहते।’ इतना कहकर लौट पड़ा। आनंदी आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ लेती है और कहती है ‘तुम्हें मेरी सौगंध, अब एक पग भी आगे न बढ़ाना।’
प्रश्न 8.
“उन्हें बहुत ग्लानि हो गयी है, ऐसा न हो, कहीं चल दें।”
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ की कहानी ‘बड़े घर की बेटी’ । से लिया गया है जिसके कहानीकार मुंशी प्रेमचन्द जी हैं।
संदर्भ : आनंदी के अपमान पर श्रीकंठ सिंह का गुस्सा और प्रण देखकर लालबिहारी को अपने किए पर ग्लानि हो आती है।
स्पष्टीकरण : श्रीकंठ सिंह अपने छोटे भाई द्वारा अपनी पत्नी के अपमान की बातें सुनकर गुस्सा हो जाते हैं। वे निर्णय लेते हैं कि इस घर में या तो लालबिहारी रहेगा या वे स्वयं। वे अपने पिता से कहते हैं कि अब वे लालबिहारी का मुँह तक देखना नहीं चाहते।
लालबिहारी अपने भाई के इस प्रण को सुनकर द्रवित हो जाता है और स्वयं घर छोड़ने का फैसला करता है। वह अपनी भाभी से क्षमा माँगता हैं। तब आनंदी दौड़कर अपने पति के पास आती है। वह कहती हैं- ‘उन्हें बहुत ग्लानि हो गयी है, ऐसा न हो, कहीं चल दें।’
V. वाक्य शुद्ध कीजिए।
प्रश्न 1.
उनकी पितामह किसी समय बड़े धन-धान्य सम्पन्न थे।
उत्तर:
उनके पितामह किसी समय बड़े धन-धान्य संपन्न थे।
प्रश्न 2.
स्वयं उनका पत्नी को ही इस विषय में उनसे विरोध थी।
उत्तर:
स्वयं उनकी पत्नी को ही इस विषय में उनसे विरोध था।
प्रश्न 3.
आनंदी अपने नये घर में आया।
उत्तर:
आनंदी अपने नये घर में आयी।
प्रश्न 4.
मुझे जाना दो।
उत्तर:
मुझे जाने दो।
VI. कोष्टक में दिये गये उचित शब्दों से रिक्त स्थान भरिए।
(ऐसी, शनिवार, संतान, गौरीपुर, हाथी)
प्रश्न 1.
इस दरवाजे पर …………. झूमता था।
उत्तर:
हाथी
प्रश्न 2.
………… में रामलीला के वही जन्मदाता थे।
उत्तर:
गौरीपुर
प्रश्न 3.
सुंदर ………. को कदाचित् उसके माता-पिता भी अधिक चाहते थे।
उत्तर:
संतान
प्रश्न 4.
श्रीकंठ सिंह ………… को घर आया करते थे।
उत्तर:
शनिवार
प्रश्न 5.
बड़े घर की बेटियाँ ………… ही होती हैं।
उत्तर:
ऐसी।
VII. अन्य लिंग रूप लिखिए।
प्रश्न 1.
ठाकुर, पति, बेटा, स्त्री, बुद्धिमान, हाथी, भाई।
उत्तरः
- ठाकुर – ठकुराइन
- पति – पत्नी
- बेटा – बेटी
- स्त्री – पुरुष
- बुद्धिमान – बुद्धिमती
- हाथी – हथिनी
- भाई – बहन
VIII. अन्य वचन रूप लिखिए।
प्रश्न 1.
घर, बेटी, भैंस, स्त्री, आँखें, थाली।
उत्तरः
- घर – घर
- बेटी – बेटियाँ
- भैंस – भैंसें
- स्त्री – स्त्रियाँ
- आँखें – आँख
- थाली – थालियाँ
मुहावरें।
- हाथ समेट लेना = खर्च कम करना
- हाथ साफ कर लेना = मार लेना, लूटना, मौके का फायदा उठा लेना
- बाट देखना = इंतजार करना
- मुँह झुलसना = जला लेना
- आड़े हाथ लेना = डाँट-डपट करना।
बड़े घर की बेटी लेखक परिचयः
कहानी सम्राट तथा उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द का जन्म काशी के निकट लमही नामक गाँव में सन् १८८० (1880) में हुआ था। माता-पिता का नाम था – श्रीमती आनंदीदेवी तथा अजायबराय। प्रेमचन्द का पहला नाम था धनपतराय। प्रेमचन्द ने करीब 13 उपन्यास लिखे हैं और तीन सौ से भी अधिक कहानियाँ लिखी हैं। उपन्यासों में – ‘गोदान’, ‘गबन’, ‘निर्मला’, ‘सेवासदन’, ‘रंगभूमि’, ‘कर्मभूमि’ आदि बहुत प्रसिद्ध हैं। कहानियों में ‘शतरंज के खिलाडी’, ‘नमक का दारोगा’, ‘कफ़न’ आदि प्रसिद्ध हैं। ८ अक्टूबर सन् १९३६ को आपका स्वर्गवास हुआ।
‘बड़े घर की बेटी’ उनकी प्रसिद्ध कहानियों में से एक है। सामाजिक जीवन के सूक्ष्म चित्रकार मुंशी प्रेमचन्द ने इस कहानी में मध्यम वर्ग के गृहस्थ जीवन की एक ऐसी घटना को चित्रित किया है जो हमारे घरों में आये दिन घटती रहती है।
आनंदी बड़े घर की बेटी है। संपन्न घर की सुविधाओं की अभ्यस्थ होने पर भी उसने अपने आपको श्रीकंठ के रुढिग्रस्त तथा अभावों से पूर्ण घर के अनुकूल बना लिया। यही उसका बड़प्पन है। पारिवारिक सदस्यों के आपसी संबंधों के महत्व की कहानी है।
बड़े घर की बेटी Summary in Hindi
उपन्यास सम्राट प्रेमचंद ने बहुत ही अच्छी कहानियाँ लिखी हैं। ‘बड़े घर की बेटी’ उनकी एक श्रेष्ठ सामाजिक कहानी है। आनंदी एक अमीर घराने से मध्यवर्गीय परिवार की बहू बनकर आती है। वहाँ के हालतों के अनुकूल वह अपने को ढाल लेती है। वह अपने देवर से अपमानित होकर भी घर की इज्जत बचा लेती है। आनंदी के उच्च संस्कार उसे सचमुच ‘बड़े घर की बेटी’ बनाते हैं।
आनंदी ताल्लुकेदार भूपसिंह की बेटी थी। वह सुंदर व सुशील थी। वह अपने मायके में बड़े ही लाड़-प्यार से पली थी। आनंदी का विवाह बेनीमाधव सिंह के बड़े बेटे श्रीकंठ से हुआ था। बेनी माधवसिंह एक जमींदार था। उसकी जमीन-जायदाद सब कुछ खत्म हो गई थी। अब वह एक साधारण किसान ही रह गया था।
आनंदी का पति श्रीकंठ पढ़ा-लिखा नौजवान था। शहर में काम करता था। उसका परिवार गाँव में था। उसके घर में सुख-सुविधाएँ बहुत कम थीं। फिर भी आनंदी ने अपने-आप को घर के अनुकूल बनाये रखा। वह खुशी से जीवन-यापन करने लगी। श्रीकंठ पढ़ाई के साथ-साथ, संस्कारित और भारतीय संस्कृति का अनुयायी था। संयुक्त परिवार का हिमायती भी था।
श्रीकंठ के छोटे भाई का नाम लालबिहारी सिंह था। वह अनपढ़ और उजड्ड था। एक दिन लालबिहारी सिंह ने खाना खाते समय घी माँगा। घी खत्म हो चुका था। अतः आनंदी घी नहीं दे पाई। इस कारण लालबिहारी सिंह ने गुस्से में भाभी को तथा उसके मायके को गालियाँ सुना दीं। आनंदी ने भी वापस कुछ खरी-खोटी सुना दी। तब लालबिहारी सिंह ने गुस्से में आकर आनंदी पर खड़ाऊ फेंक कर मार दिया। इससे आनंदी को बड़ा दुःख हुआ।
अब श्रीकंठ शहर से गाँव आया, तो आनंदी ने सारी कहानी उसे सुनाई। श्रीकंठ ने क्रोधित होकर अपने बाप से कहा – इस घर में या तो वह रहेगा, या लालबिहारी। पिता ने पुत्र को समझाया कि घर का बँटवारा न हो। उनका घर गाँव में एक आदर्श था। अगर भाई-भाई के बीच की अनबन की बात गाँव में फैलेगी, तो उनकी बदनामी होगी। लालबिहारी सिंह को अपनी गलती पर पछतावा हुआ। पर उसकी बातें श्रीकंठ को शांत नहीं कर पाईं। वह घर के अलगाव की बात पर अड़े रहे। तब लालबिहारी सिंह ने भाभी के पास जाकर, वह खुद घर से निकल जाने की बात कही। यह सुनकर आनंदी का दिल पिघल गया।
आनंदी बड़े घर की बेटी थी। उसके संस्कार अच्छे थे। उसने अपने पति श्रीकंठ को समझाया कि आगे घर में इस प्रकार के झगड़े नहीं होने देंगे। श्रीकंठ ने अपने भाई को गले लगाया। ठाकुर बेनीमाधव सिंह की आँखें भर आईं। गुणवती आनंदी के संस्कारों के कारण टूटता हुआ घर बच गया। सचमुच बड़े घर की बेटियाँ ऐसी ही होती हैं।
बड़े घर की बेटी Summary in Kannada
बड़े घर की बेटी Summary in English
The descendant of the landed aristocracy, Thakur Beni Madhav Singh was the headman of Gauripur village. During the days of his affluent forefathers, as people say, there stood an elephant in front of their door, adding grandeur to the house. The years rolled by and the elephant was replaced by an old and decrepit buffalo. A substantial chunk of his property was swallowed up by litigations. And his yearly income was reduced to one thousand rupees. Thakur Sahib had two sons. Srikant Singh, the elder one, earned his bachelor’s degree in arts after years of hard labour. He had obtained employment in an office. Lal Bihari Singh, the younger son, was uneducated. He was a strapping young man with a plump face and broad and muscular shoulders. Srikant stood in stark contrast to Lal Bihari.
Though Srikant had a contemporary English education, he condemned the modern code of ethics and the morals of the west. He was, therefore, held in high esteem by the villagers. He was also an avowed advocate of the extended family system. Anandi, his wife, came from noble stock. Her father, Bhup Singh, was the owner of a small estate, with an enormous mansion. Genial and generous by disposition, he was also bold and brave. He was blessed with seven daughters. Anandi was his fourth daughter. One day Srikant went to Bhup Singh for a donation to some cause. Bhup Singh was highly impressed by his polished manners and in time the marriage of Srikant and Anandi was celebrated with traditional pomp and ceremony.
When Anandi joined Srikant’s family as a daughter-in-law, she was shocked to find her new house was entirely different from her maternal house. There were neither horses or elephants nor a garden. It was a simple house, typical of the countryside. The house had no windows, no carpets and no pictures on the walls. However, Anandi adjusted herself marvellously well with the new life, without even tending to display feelings that she once lived in the lap of luxury
One day Lal Bihari Singh came home with the meat of two wild ducks and asked his bhabhi to cook the meat. When she went to the kitchen to cook the meat, she discovered to her dismay that there was very little ghee. She used all the ghee that was available to cook the meat. When Lal Bihari sat down to take his food, he found that the lentils hadn’t been garnished with ghee. He lost his temper. When he questioned Anandi, she replied curtly that she had used all the ghee that was left in the can. At this Lal, Bihari flew into a rage and taunted her father. Anandi, who could not tolerate the abuse hurled at her parents, said that in her maternal house even barbers and watermen consumed as much ghee every day. Her words stung Bihari. He threw the plate on the floor and snarled at her asking her to hold her tongue. Anandi’s face also turned red with rage and she snapped saying had her husband been there he would have taught him a lesson. Lal Bihari grew reckless; he took one of his wooden sandals and hurled it at Anandi. Anandi parried the blow, safeguarding her head. But her hand was injured. Trembling with anger, she retreated to her room.
Srikant used to visit his village every Saturday. The quarrel had taken place on Thursday. Anandi went without food for two consecutive days and waited impatiently for her husband. As usual, Srikant reached home in the evening and sat in the courtyard, chatting about national and current news, pending court cases and so on until ten in the night. After dinner, he went to his wife’s room where she was sitting tensely in silent rage. She explained what had happened and burst into tears. Srikant was deeply affected by Anandi’s tears. The next day, at the break of, dawn, he went to his father and told him that he and Lal Bihari could no longer pull on together. He then told his father what had happened. Dumbfounded, Beni Madhav fell silent. Beni Madhav tried to calm him down, but he spoke harshly and refused to forgive his brother.
Standing silently near the door, Lal Bihari heard everything that transpired between his father and brother. He respected his brother more than his father. He, therefore, felt dejected and forlorn. He felt penitent and was assailed by a mounting sense of repentance. He went to Anandi and sought her pardon. He stood near the door, his head hung low. Srikant walked past him with his eyes flaming red with anger. At this, Anandi was consumed with guilt and regretted having made the complaint against Lal Bihari. Essentially kind-hearted, she had never imagined that the matter would assume such a serious proportion. As Lal Bihari moved towards the outer door intending to leave the house, Anandi said that she had no grievance against him. She caught hold of him and refused to let him go.
Seeing all this, Srikant’s heart melted. He came out and leapt forward to embrace Lal Bihari. Both of them burst into tears. Beni Madhav Singh emerged from nowhere. The sight of his sons embracing each other gladdened his heart. He remarked, “Such are the daughters of noble families – they guard the families against disintegration.”
कठिन शब्दार्थः
- नंबरदार – गाँव का भूस्वामी;
- मरम्मत – ठीक करना;
- निर्बल – बलहीन, कमज़ोर;
- वैद्यक ग्रंथ – चिकित्सा सम्बन्धी पुस्तक;
- निर्वाह – निभानेवाला;
- बहरी – बाज जैसा एक शिकारी पक्षी;
- शिकरे – बाज से छोटा एक शिकारी पक्षी;
- रीझ – प्रसन्न होना;
- टीमटाम – श्रृंगार, सजावट;
- भावज – भाई की पत्नी, भाभी;
- फिकायत – बचत करना;
- तिनक – चिढ़ना, गुस्सा होना;
- ढिठाई – दुस्साहस;
- उजड्ड – गवार, असभ्य;
- खड़ाऊँ – काठ की बनी खूटीदार पादुका;
- सुधि – ध्यान रहना;
- शऊर – तरीका, ढंग;
- दब्बू – दबकर रहनेवाला;
- हथकंडा – षड्यंत्र;
- घुड़का – डाँटना;
- मुगदर – व्यायाम के लिए लकड़ी की बनी मुंगरी;
- खरल – दवा कूटने के पत्थर की कँडी।