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Karnataka 1st PUC Hindi Textbook Answers Sahitya Vaibhav Chapter 11 कबीरदास के दोहे
कबीरदास के दोहे Questions and Answers, Notes, Summary
I. एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए:
प्रश्न 1.
किसके प्रताप से सब दुःख दर्द मिटते हैं?
उत्तर:
सद्गुरु के प्रताप से सब दुःख दर्द मिटते हैं।
प्रश्न 2.
कबीर के गुरु कौन थे?
उत्तर:
कबीर के गुरु रामानंद थे।
प्रश्न 3.
कबीर किस पर बलिहारी होते हैं?
उत्तर:
कबीर गुरु पर बलिहारी होते हैं।
प्रश्न 4.
माटी कुम्हार से क्या कहती है?
उत्तर:
माटी कुम्हार से कहती है, तू मुझे क्यों रौंदता करता है? एक दिन ऐसा होगा कि जब मैं तुझे रौदूंगी।
प्रश्न 5.
किसको पास रखना चाहिए?
उत्तर:
निंदकों को पास रखना चाहिए।
प्रश्न 6.
कस्तूरी कहाँ बसती है?
उत्तर:
कस्तूरी मृग की नाभि में बसती है।
प्रश्न 7.
कबीर किसकी राह देखते हैं?
उत्तर:
कबीर भगवान राम की राह देखते हैं।
प्रश्न 8.
क्रोध किसके समान है?
उत्तर:
क्रोध मृत्यु के समान हैं।
प्रश्न 9.
दुःख में मनुष्य क्या करता है?
उत्तर:
दुःख में मनुष्य भगवान का स्मरण करता है।
प्रश्न 10.
कबीरदास के अनुसार किसकी जाति नहीं पूछनी चाहिए?
उत्तर:
कबीरदास के अनुसार साधु (सज्जन) की जाति नहीं पूछनी चाहिए।
अतिरिक्त प्रश्नः
प्रश्न 11.
गुरु के मिलने से कबीर की क्या मिट गयी?
उत्तर:
गुरु के मिलने से कबीर की दुविधा मिट गयी।
प्रश्न 12.
कबीर के दोनों ओर कौन खड़े हैं?
उत्तर:
कबीर के दोनों ओर गुरू और गोविंद खड़े हैं।
प्रश्न 13.
एक दिन माटी किसे रौंदेगी?
उत्तर:
एक दिन माटी तुझे (मनुष्य के अहंकार को) रौंदेगी।
प्रश्न 14.
निन्दक की कुटी कहाँ बनानी चाहिए?
उत्तर:
निन्दक की कुटी घर के आँगन में बनानी चाहिए।
प्रश्न 15.
स्वभाव किसके बिना निर्मल हो सकता है?
उत्तर:
स्वभाव बिना साबुन और बिना पानी के निर्मल हो सकता है।
प्रश्न 16.
मृग बन में क्या ढूँढ़ता है?
उत्तर:
मृग बन में कस्तूरी ढूँढ़ता है।
प्रश्न 17.
घटि घटि क्या है?
उत्तर:
घटि घटि में भगवान राम हैं।
प्रश्न 18.
जहाँ दया है, वहाँ क्या है?
उत्तर:
जहाँ दया है, वहाँ धर्म है।
प्रश्न 19.
लोभ किसके समान है?
उत्तर:
लोभ पाप के समान है।
प्रश्न 20.
पल में क्या हो जाएगा?
उत्तर:
पल में परलै (प्रलय – सर्वनाश) हो जाएगा।
प्रश्न 21.
साधु से क्या पूछना चाहिए?
उत्तर:
साधु से ज्ञान पूछना चाहिए।
प्रश्न 22.
किसका मोल करना चाहिए?
उत्तर:
तलवार का मोल करना चाहिए।
II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिएः
प्रश्न 1.
गुरु की महिमा के बारे में कबीर क्या कहते हैं?
उत्तर:
गुरु की महिमा के बारे में कबीर कहते हैं कि गुरु के प्रताप से सब दुःख दर्द मिट जाते हैं। वह बड़ा भाग्यशाली है कि उसे रामानंद जैसे गुरु मिले। गुरु भगवान से बढ़कर हैं क्योंकि उन तक पहुंचने का मार्ग गुरु ही बताते हैं। अतः कबीर कहते हैं कि अगर गुरु और गोविन्द दोनों उसके सामने हो तो वह गोविन्द (भगवान) से पहले गुरु को ही प्रणाम करेंगे।
प्रश्न 2.
जीवन की नश्वरता के बारे में कबीर के क्या विचार हैं?
उत्तर:
जीवन की नश्वरता के बारे में कबीरदास कहते हैं कि यह मनुष्य जीवन क्षण-भंगुर है। इसलिए इसके प्रति अहंकार नहीं करना चाहिए। जो कुम्हार मिट्टी को रौंदता है, उससे मिट्टी कहती है- तू मुझे क्यों रौंदता है? एक दिन वह भी आयेगा, जब तू मर जायेगा, तो इसी मिट्टी में तुम्हें गाड़ दिया जाएगा। तब मैं तुझे रौंदूंगी। अतः मानुष-तन का गर्व नहीं करना चाहिए।
प्रश्न 3.
दया और धर्म के महत्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दया और धर्म ये दोनों अच्छे गुण या आचरण हैं। जहाँ दया होती है, वहाँ धर्म भी होता है और जहाँ लोभ (लालच) होता है, वहाँ पाप होता है। इसी प्रकार जहाँ क्रोध होता है, वहाँ काल या मृत्यु होती है और जहाँ क्षमा होती है, वहाँ ईश्वर होते हैं। अतः ईश्वर की प्राप्ति के लिए दया और क्षमा को अपनाना चाहिए, लोभ व क्रोध को त्यागना चाहिए।
प्रश्न 4.
समय के सदुपयोग के बारे में कबीर क्या कहते हैं?
उत्तर:
समय के सदुपयोग के बारे में कबीरदास कहते हैं कि हमें जो काम कल करना है, उसे आज ही कर लेना चाहिए और जो आज करना है, वह अभी कर लेना चाहिए। क्योंकि कल क्या होगा, किसने जाना? पल भर में प्रलय हो सकता है, फिर कब करोगे? बाद में पछताने से क्या होगा?
प्रश्न 5.
कबीर के अनुसार ज्ञान का क्या महत्व है?
उत्तर:
कबीरदास ज्ञान का महत्व प्रतिपादित करते हुए कहते हैं कि साधु की कभी जाति नहीं पूछनी चाहिए। यदि पूछना ही है, तो उसके ज्ञान के बारे में चर्चा कर सकते हैं। हमें खरीदनी है तलवार, तो तलवार का मूल्य जानना है, नाकि तलवार को रखने के म्यान का। अतः ज्ञान को महत्व देना चाहिए।
अतिरिक्त प्रश्नः
प्रश्न 6.
गुरु और गोविंद में से कबीर किसे चुनना चाहते हैं और क्यों?
उत्तर:
कबीर कहते हैं कि अगर गुरु और परमात्मा दोनों एक साथ खड़े हैं तो मैं सबसे पहले गुरु को चुनूँगा। क्योंकि गुरु ने ही मुझे परमात्मा के दर्शन कराये हैं। परमात्मा के दर्शन तो गुरु के उपदेश और उनकी कृपा के द्वारा ही होते हैं।
प्रश्न 7.
कबीर के अनुसार निन्दक को क्यों पास रखना चाहिए?
उत्तर:
कबीर के अनुसार निंदक को सदा अपने समीप रखना चाहिए क्योंकि उसके द्वारा निन्दा होने के भय से हम कोई बुरा कार्य नहीं करेंगे। निंदकों की निंदा-भरी बाते सुन-सुनकर हमें आत्मसुधार करने का मौका मिलेगा।
प्रश्न 8.
कस्तूरी मृग के द्वारा कबीर कौन सी सीख देते हैं?
उत्तर:
कस्तूरी मृग की नाभि में सुगंध होती है लेकिन वह उसे जंगल में खोजता फिरता है। उसी तरह लोग भी ईश्वर को मन्दिर-मस्जिद में खोजते फिरते है लेकिन ईश्वर तो सबके हृदय में निवास करता है। कबीर कहते हैं हमें ईश्वर को बाहर नहीं भीतर खोजना चाहिए।
प्रश्न 9.
राम मिलन के बारे में कबीर के विचार स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राम मिलन के बारे में कबीर कहते हैं- मैं तुम्हारा नाम रटती हुई बहुत दिनों से तुम्हारी राह देख रही हूँ। तुमसे मिले बिना मेरे मन को शांति नहीं है।
प्रश्न 10.
कबीर ने राम स्मरण का कौनसा सही मार्ग समझाया है?
उत्तर:
कबीर राम स्मरण के बारे में बताते हुए कहते हैं कि हमें राम का स्मरण सुख और दुःख में सदैव समान भाव से करना चाहिए। लेकिन लोग उल्टा करते हैं। जब दुःख आता है तभी भगवान को याद करते हैं। कबीर कहते हैं- यदि हम सुख में भी भगवान को याद करेंगे, उनकी भक्ति करेंगे तो दुःख हमारे निकट कभी आएगा ही नहीं।
III. ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए:
प्रश्न 1.
माटी कहै कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय।
इक दिन ऐसो होयगो, मैं रौंदुंगी तोय॥
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘कबीरदास के दोहे’ से लिया गया है। इसके रचयिता कबीरदास हैं।
संदर्भ : प्रस्तुत दोहे में कबीरदास जी हमें यह संदेश देते हैं कि दुनिया नश्वर है। हमें किसी चीज का घमंड या अहंकार नहीं करना चाहिए।
स्पष्टीकरण : कवि मनुष्य के अहंकार तथा क्षणभंगुर जीवन के बारे में कहते हैं कि – मिट्टी कुम्हार से कहती है कि तू मुझे क्यों रौंदता है? इतना क्यों अहंकार करता है? एक दिन वह भी आएगा, जब मैं तुझे रौंदूंगी, तब तुम्हारा अहंकार कहाँ रहेगा? हे मानव! अहंकार मत कर। यह जीवन क्षणभंगुर है। मिट्टी का मानव मिट्टी में मिल जाएगा। यानी मनुष्य अपनी मृत्यु के बाद मिट्टी में ही मिल जाता है। इससे मनुष्य जीवन के अस्थायी होने का परिचय मिलता है।
प्रश्न 2.
निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छबाय।
बिन पानी, साबुन बिना निर्मल करै सुभाय॥
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘कबीरदास के दोहे’ से लिया गया है। इसके रचयिता कबीरदास हैं।
संदर्भ : यहाँ कबीर कहते हैं कि आलोचना करने वाले का हमें सदैव सम्मान करना चाहिए।
स्पष्टीकरण : कबीर के अनुसार हमें अपनी निंदा करनेवाले अर्थात आलोचना करनेवाले को अपने समीप रखना चाहिए। हमें उसकी कड़वी, बुरी लगनेवाली बातों से नाराज नहीं होना चाहिए। कड़वी लगने वाली बातों में हमारी भलाई की, हमारे कल्याण का भाव निहित होता है। कबीर कहते हैं ऐसे व्यक्ति को घर में जगह देनी चाहिए। उसके पास रहने से हमको यह लाभ होगा कि वह बिना पानी-साबुन के हमारे स्वभाव को स्वच्छ बना देगा अर्थात् हम उसके द्वारा निन्दा होने के डर से कोई बुरा कार्य नहीं करेंगे। आशय यह है कि निंदको की निंदा भरी बातें सुन-सुनकर हमें
आत्मसुधार करने का मौका मिलता है।
प्रश्न 3.
कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढे बन मांहि।
ऐसे घटि घटि राम हैं, दुनिया देखै नांहि॥
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘कबीरदास के दोहे’ से लिया गया है। इसके रचयिता कबीरदास हैं।
संदर्भ : यहाँ कबीरदास जी कहते हैं कि हमें प्रत्येक प्राणी के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करना चाहिए, सच्ची भक्ति के साथ जीवन को सार्थक बनाना चाहिए, क्योंकि वही सच्ची भक्ति है।
स्पष्टीकरण : संत कवि कहते हैं कि मनुष्य ईश्वर को पाने के लिए इधर-उधर भटकता है, जब कि ईश्वर उसी के अन्दर या उसी के पास है। जैसे कि – कस्तूरी मृग की नाभि में ही है, पर मृग नहीं जानता और भ्रमित होकर सारे वन में उसे ढूँढ़ता फिरता है। इसी प्रकार घट-घट में राम समाया हुआ है, पर मानव उसे भ्रम के कारण देख नहीं पाता।
प्रश्न 4.
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे होय॥
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘कबीरदास के दोहे’ से लिया गया है। इसके रचयिता कबीरदास हैं।
संदर्भ : यहाँ कबीरदास जी कहते हैं कि ईश्वर का हमेशा स्मरण करते रहना चाहिए।
स्पष्टीकरण : कबीरदास के अनुसार हम दुःख-तकलीफ में ईश्वर को याद करते है परन्तु सुख में ईश्वर को भूल जाते है। मनुष्य केवल अपने स्वार्थ के लिए ईश्वर को याद करता है। कबीर का मत है कि जिस दिन मनुष्य सुख में ईश्वर का ध्यान करेगा उस दिन से उसे दुःख का सामना नहीं करना पड़ेगा। ईश्वर के स्मरण से मिलने वाली शक्ति द्वारा उसका दुःख सुख में परिवर्तित हो जायेगा।
कबीरदास के दोहे कवि परिचयः
संत काव्यधारा के सर्वाधिक प्रतिभाशाली एवं भक्तिकालीन निर्गुण भक्ति के प्रवर्तक कबीरदास का जन्म काशी में सन् 1399 में हुआ। नीरु एवं नीमा नामक जुलाहा दंपति ने आपका पालनपोषण किया। कबीर अनपढ़ थे किन्तु वे आत्मज्ञानी थे। रामानंद जी की शिक्षाओं से प्रभावित कबीरदास जी को कुछ लोग रामानन्द का ही शिष्य मानते हैं। एक दूसरा मत उन्हें सूफी सिद्धांत के प्रतिपादक शेख तकी का शिष्य मानता है। आपने हिन्दू-मुस्लिम एकता, भौतिक एवं आत्मिक परिष्कार, शुद्ध प्रेम, सच्चाई, सादगी आदि पर बल दिया। आपकी मृत्यु सन् 1518 में मगहर नामक स्थान में हुआ।
कबीरदास की रचनाएँ तीन भागों में विभक्त हैं- साखी, सबद और रमैनी जो ‘बीजक’ नामक ग्रंथ में संकलित है। कबीर की भाषा को प्रायः ‘खिचडी भाषा’ या ‘सधुक्कड़ी भाषा’ कहा जाता है जिसमें ब्रज, अवधी, राजस्थानी, अरबी, फारसी आदि के शब्द पाये जाते हैं। आप के प्रमुख शिष्य धर्मदास जी ने ‘बीजक’ का संग्रह किया था।
प्रस्तुत दोहों में कबीर ने गुरु-महिमा, शरीर की नश्वरता, परमात्मा की सर्वव्यापकता, भक्तिभावना एवं नीतिपरक उपदेश आदि गुणों पर प्रकाश डाला है।
दोहे का भावार्थः
1) सद्गुरु के परताप तैं मिटि गया सब दुःख दर्द।
कह कबीर दुविधा मिटी, गुरु मिलिया रामानंद ॥ १ ॥
कबीरदास इस दोहे में गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि सच्चे गुरु के मिल जाने से सारे दुःख-दर्द मिट गए हैं। कबीर के अनुसार जब उन्हें रामानंद जैसे सच्चे (सद्गुरु) गुरु मिल गये, तो उनकी सारी दुविधाएँ (कठिनाइयाँ) मिट गईं।
In this couplet, Kabir elaborates upon the generosity and greatness of a guru and says that upon finding a real guru, all pain and suffering will vanish. According to Kabir, when he found the real guru such as his own guru Ramanand, all his troubles and difficulties vanished.
शब्दार्थ :
- परताप – तेज, प्रभुत्व;
- तें – से;
- दुविधा – संशय, असमंजस;
- मिटि गया – दूर हो गया।
2) गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पायँ।
बलिहारी गुरु आपने, जिन गोविन्द दियो बताय ॥ २॥
गुरु और परमात्मा दोनों एक ही साथ खड़े हुए हैं, इन दोनों में से मैं किसको प्रणाम करूँ? हे गुरु, मैं आप पर न्योछावर होता हूँ। क्योंकि आपने मुझे परमात्मा के दर्शन कराये हैं। अर्थात् परमात्मा के दर्शन गुरु के उपदेश और उनकी कृपा के द्वारा ही होते हैं। इसलिए गुरु की परमात्मा से भी अधिक महत्ता है।
Here, Kabir explains the importance of a guru. If one were to find both the guru and God standing before him/her, who should one bow to first? Kabir says that if both guru and Govind (God) stood before him, he would first fall at the feet of the guru. He explains this by saying that guru is greater than God, because guru is the one who shows us the path to God.
शब्दार्थ :
- काके – किसके;
- बलिहारी – न्योछावर होना, कुरबान करना;
- दोऊ – दोनों।
3) माटी कहै कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय।
इक दिन ऐसो होयगो, मैं रौंदूंगी तोय ॥ ३॥
इस दोहे में कबीरदास मनुष्य के अहंकार के बारे में कहते हैं। माटी कुम्हार से कहती है- तू मुझे क्यों रौंद रहा है? एक दिन ऐसा आएगा, जब मैं तुझे रौंदूंगी। अर्थात् जन्म लेनेवाला यह मनुष्य एक दिन मिट्टी में मिल जाएगा।
In this couplet, Kabir comments on the arrogance and egoistic nature of man. The mud asks the potter why he is trampling upon it, and what he is trying to gain. The mud warns the potter that a day will come when he will be trampled upon by the mud. Kabir implies that when man dies he will be buried in the earth to become one with it, and therefore, one must not be too egoistic in life.
शब्दार्थ :
- माटी – मिट्टी;
- रौंदना – पैरों से कुचलना, दबाना
- मोये – मुझे;
- तोये – तुझे;
- कुम्हार – मिट्टी के बर्तन बनानेवाला
- होयगो – होगा।
4) निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छबाय।
बिन पानी, साबुन बिना निर्मल करै सुभाय ॥४॥
अपने निंदक को सदा अपने समीप रखो। हो सके तो अपने आँगन में ही एक कुटिया बनवा दो। उसके पास रहने से हमको यह लाभ होगा कि वह बिना पानी और साबुन के हमारे स्वभाव को स्वच्छ बना देगा अर्थात् हम उसके द्वारा निन्दा होने के भय से कोई बुरा कार्य नहीं करेंगे। आशय यह है कि निंदकों की निंदा-भरी बाते सुन-सुनकर हमें आत्मसुधार करने का मौका मिलेगा।
Here, Kabir explains the importance of criticism. We always try to keep our most vocal critics at a distance. Kabir says that we must always keep the people who criticize us, close to us. He says that they are the ones who help us clean ourselves without soap or water. What Kabir intends to say is that when someone criticizes us, they help us to see our mistakes which we often overlook. When we are aware of our mistakes, we can rectify them. Thus, without soap or water, our critics help us clean our mind and heart. They help us correct ourselves and hence, we must always keep them close to us.
शब्दार्थ :
- नियरे – पास;
- राखिये – रख लीजिए;
- छबाय – बनाकर;
- सुभाय – स्वभाव
5) कस्तूरी कुंडली बसै, मृग ढूंढे बन मांहि|
ऐसे घटि घटि राम हैं, दुनिया देखै नांहि ॥५॥
कस्तूरी नामक सुगंधित वस्तु मृग की नाभि में ही होती है, परन्तु वह उसे जंगल में खोजता फिरता है। उसी प्रकार ईश्वर सबके हृदय में निवास करता है, परन्तु लोग उसे देख नहीं पाते।
In this couplet, Kabir explains about the omnipresence of God. He says that musk is located in the navel of a deer. However, the deer searches for musk in the forest, due to its ignorance. Similarly, Kabir says that God resides in each one of us. God is present everywhere, but the whole world is blind to this fact. Kabir uses the example of the deer to tell us that people all over the world search for God, without realizing the fact that God is everywhere.
शब्दार्थ :
- कुंडली – नाभी;
- मृग – हिरन;
- बन – जंगल;
- घटि घटि – कण कण में
6) बहुत दिनन की जोवती, बाट तुम्हारी राम।
जिव तरसै तुझ मिलन कूँ, मनि नाहीं विश्राम ||೯||
मैं तुम्हारा नाम रटती हुई बहुत दिनों से अर्थात् न जाने कब से तुम्हारे आने का मार्ग देख रही हूँ। मन तुमसे मिलने के लिए व्याकुल हो रहा हैं और मन में उसके बिना शांति नहीं है।
Here, Kabir talks about a woman’s devotion and love for Lord Rama. She says that it has been many days since she has been reciting and chanting Lord Rama’s name and that she is looking forward to His arrival. She is impatient to meet with the Lord and until then, her mind is not at peace.
शब्दार्थ :
- दिनन की – दिनों की;
- जोवती – प्रतीक्षा करना, राह देखना, इंतज़ार करना;
- जिव – प्राण;
- कूँ – के लिए;
- मनि – मन;
- तरसै – तरसना;
- बाट – इंतजार, प्रतीक्षा।
7) जहाँ दया तहँ धर्म है, जहाँ लोभ तहँ पाप।
जहाँ क्रोध तहँ काल है, जहाँ छिमा तहँ आप ॥७॥
जहाँ दया है, वहाँ धर्म है और जहाँ लोभ है, वहाँ सदा पाप है। इसी प्रकार जहाँ क्रोध है, वहाँ काल का निवास है और जहाँ क्षमाशील प्राणी है, वहाँ ईश्वर निवास करता है।
Kabir says where there is kindness, there is righteousness and where there is avarice there is sin. Where there is anger, there is calamity, but where there is kindness, there is no vice. There is only God in His perceptible form (kindness and forgiveness, both are great).
शब्दार्थ :
- काल – मृत्यु;
- छिमा – क्षमागुण;
- आप – भगवान।
8) काल करै सो आज कर, आज करै सो अब्ब।
पल में परलै होयगा, बहुरि करैगा कब्ब ॥८॥
कबीर का कहना है कि हमें जो काम कल करना है, उसे आज ही कर लें और जो आज करना है, उसे तुरन्त अभी कर लें क्योंकि इस क्षण-भंगुर संसार का तो कुछ भी निश्चय नहीं है और क्षण भर में प्रलय होने की आशंका है। इस प्रकार प्रलय होने पर तो किसी भी कार्य को करने का अवसर ही न मिलेगा। अतः आज का काम आज ही करना अच्छा है।
Here, Kabir puts forth his most well-known lines. He says that whatever work we have for tomorrow, we must do today and whatever work we have for the present day, we must do it right now, because in this fickle universe nothing is certain except that destruction can happen at any time. In case the world is destroyed, there will be no opportunity to do any of the work that we wished to do. Hence, any work that we intend to do must be done at once.
शब्दार्थ :
- काल – कल;
- परलय – प्रलय, सर्वनाश;
- बहुरि – फिर।
9) दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे होय ॥९॥
कबीरदास कहते हैं कि मनुष्य जब दुखी होता है तो भगवान का स्मरण करता है और जब सुखी होता है तो भगवान को भूल जाता है। यदि सुख में भी हम भगवान को स्मरण करेंगे, तो दुःख होगा ही क्यों? अर्थात् ईश्वर का हमेशा स्मरण करते रहना चाहिए।
This world is full of selfishness. Everyone in this world remembers God when in distress, but forgets Him when he is happy. Everyone, leading a comfortable life, under the effect of delusions and attachments, forgets Him. If one remembers Him when he is leading a comfortable life, there is no reason why he should be struck by distress. And so, one should remember God under all circumstances, whether he is living a comfortable life or a sorrowful life.
शब्दार्थ :
- सुमिरन – स्मरण;
- काहे – क्यो।
10) जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान ।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ॥ १०॥
कबीरदास कहते हैं कि संतजन (साधु) की जाति मत पूछो, यदि पूछना ही है तो उनके ज्ञान के बारे में पूछ लो। तलवार को खरीदते समय सिर्फ तलवार का ही मोल-भाव करो, उस समय . तलवार रखने के कोष को पड़ा रहने दो। उसका मूल्य नहीं किया जाता।
In this couplet, Kabir explains the importance of knowledge. He says that we must not ask an ascetic about his religion or caste; we must, rather, enquire about his knowledge. Similarly, we must give importance to the sharpness of a sword, and not its sheath. Kabir tells us that caste and creed, like the sheath of a sword, are quite unimportant, while knowledge which is akin to the sharpness of the sword, is only of the utmost importance.
शब्दार्थ :
- ग्यान – ज्ञान;
- म्यान – तलवार रखने का कोष