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Karnataka 2nd PUC Hindi Textbook Answers Sahitya Gaurav Chapter 1 सुजान भगत
सुजान भगत Questions and Answers, Notes, Summary
I. एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए :
प्रश्न 1.
सीधे-सादे किसान धन आते ही किस ओर झुकते हैं?
उत्तर:
सीधे-सादे किसान धन हाथ आते ही धर्म और कीर्ति की ओर झुकते हैं।
प्रश्न 2.
कानूनगो इलाके में आते तो किसके चौपाल में ठहरते?
उत्तर:
कानूनगो इलाके में आते, तो सुजान महतो के चौपाल में ठहरते।
प्रश्न 3.
सुजान ने गाँव में क्या बनवाया?
उत्तर:
सुजान ने गाँव में एक पक्का कुँआ बनवाया।
प्रश्न 4.
सुजान की पत्नी का नाम क्या है?
उत्तर:
सुजान की पत्नी का नाम बुलाकी है।
प्रश्न 5.
सुजान के बड़े बेटे का नाम लिखिए।
उत्तर:
सुजान के बड़े बेटे का नाम भोला है।
प्रश्न 6.
सुजान के छोटे बेटे का नाम क्या है?
उत्तर:
सुजान के छोटे बेटे का नाम शंकर है।
प्रश्न 7.
कौन द्वार पर आकर चिल्लाने लगा?
उत्तर:
भिक्षुक द्वार पर आकर चिल्लाने लगा।
प्रश्न 8.
बुढ़ापे में आदमी की क्या मारी जाती है?
उत्तर:
बुढ़ापे में आदमी की बुद्धि मारी जाती है।
प्रश्न 9.
घर में किसका राज होता है?
उत्तर:
घर में उसी का राज होता है जो कमाता है।
प्रश्न 10.
कटिया का ढेर देखकर कौन दंग रह गयी?
उत्तर:
कटिया का ढेर देखकर बुलाकी दंग रह गई।
प्रश्न 11.
सुजान की गोद में सिर रखे किन्हें अकथनीय सुख मिल रहा था?
उत्तर:
बैलों को सुजान की गोद में सिर रखकर अकथनीय सुख मिल रहा था।
प्रश्न 12.
भिक्षुक के गाँव का नाम लिखिए।
उत्तर:
भिक्षुक के गाँव का नाम अमोला है।
अतिरिक्त प्रश्न :
प्रश्न 13.
तीन वर्ष लगातार कौन-सी फसल लगती गयी?
उत्तर:
तीन वर्ष लगातार ऊख की फसल लगती गयी।
प्रश्न 14.
सत्कार्य में बाधा डालने से क्या बिगड़ता है?
उत्तर:
सत्कार्य में बाधा डालने से अपनी ही मुक्ति बिगड़ती है।
प्रश्न 15.
भगत बनने के बाद सबसे बड़ी बात क्या है?
उत्तर:
भगत बनने के बाद झूठ का त्याग करना पड़ता है।
प्रश्न 16.
सुजान के हाथों से धीरे-धीरे क्या छीने जाने लगे?
उत्तर:
सुजान के हाथों से धीरे-धीरे अधिकार छीने जाने लगे।
प्रश्न 17.
शंकर क्या भरकर लाया?
उत्तर:
शंकर नारियल भरकर लाया।
प्रश्न 18.
सुजान ने रुपये-पैसे का लेन-देन किसके हाथ में दे रखा था?
उत्तर:
सुजान ने रुपये-पैसे का लेन-देन अपनी पत्नी बुलाकी के हाथ दे रखा था।
प्रश्न 19.
सुजान को कितने महीने के अविरल परिश्रम का फल मिला?
उत्तर:
सुजान को आठ महीने के अविरल परिश्रम का फल मिला।
प्रश्न 20.
किसने भोला को परास्त कर दिया था?
उत्तर:
वृद्ध पिता ने भोला को परास्त कर दिया था।
II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
प्रश्न 1.
सुजान महतो की संपत्ति बढ़ी तो क्या करने लगा?
उत्तर:
सुजान महतो की संपत्ति बढी तो उनके चित्त की वृत्ति धर्म की ओर झुक पडी। साधु-संतों का आदर सत्कार होने लगा, द्वार पर धूनी जलने लगी। कानूनगो इलाके में आते तो सुजान की चौपाल में ठहरते। हल्के के हेड कांस्टेबल, थानेदार, शिक्षा विभाग के अफसर यहाँ तक कि बड़े-बड़े हाकिम भी उसके चौपाल में आकर ठहरने लगे। घर में भजन-भाव होता, सत्संग होता सुजानने गाँव में एक पक्का कुआ बनवा दिया इसनहर जो काम गाँव के किसी ने न किया था सुजानने कर दिखाया।
प्रश्न 2.
घर में सुजान भगत का अनादर कैसे हुआ?
उत्तर:
सुजान महतो सुजान भगत बनने के बाद धार्मिक और सत्कार्य करने लगे। घर के मामलों में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाते थे। इसलिए घरवालों की नजरों में गिर गये। सुजान के हाथों से धीरे-धीरे अधिकार छीने जाने लगे। किस खेत में क्या बोना है, किसको क्या देना है, किससे क्या लेना है, किस भाव क्या चीज़ बिकी, ऐसी महत्वपूर्ण बातों में भी भगत जी की सलाह न ली जाती थी। उनके दोनों जवान बेटे बात-बात में उन पर फब्तियाँ कसते। उनकी पत्नी बुलाकी भी बेटों के पक्ष में थी। हद तब हो गई जब वे भिक्षुक को दान देने की स्वतंत्रता भी खो चुके। गाँव भर में सुजान का मान-सम्मान बढ़ता था और अपने घर में उसका मान सम्मान घट रहा था।
प्रश्न 3.
सुजान भगत पेड़ के नीचे बैठ कर क्या सोचता है?
उत्तर:
धीरे-धीरे उसके हाथ से सारे अधिकार छीने जाने लगे तब सुजान ने पेड का नीचे बैठकर सोचा उसेक ही घर में उसका अनादर। अभी वह अपाहिज नहीं है हाथ-पाँव थके नही है, घर का कुछ न कुछ काम वह करता ही रहता है फिर भी यह अनादार? उसीने वह घर बनाया था, सारी विभूति उसी के श्रम का फल है पर अब उस पर उसका कोई अधिकार नही। अब वह दरवाजे पर कुत्ते जैसा है, पड़ा रहता है, घरवाले जो रुखा-सूखा दे, वहीं खाकर पेट भर लिया करे। ऐसे जीवन को वह धिक्कारता है। ऐसे घर में वह रह नही सकता।
प्रश्न 4.
सुजान भगत को सबसे अधिक क्रोध बुलाकी पर क्यों आता है?
उत्तर:
सुजान को सबसे अधिक क्रोध अपनी पत्नी बुलाकी पर आया। क्योंकि वह भी लड़कों का साथ देती थी। लड़कों को मालूम नही कितने परिश्रम से उसने गृहस्थी जोडी है लेकिन उसे तो मालूम है। सुजान ने दिन-को दिन और रात को रात नही समझा। इतनी कड़ी मेहनत की। भादो की अँधेरी रात में मडैया लगा के जुआर की रखवाली करता था। जठे-बैसाख की दोपहरी में भी दम न लेता था। अब उसी घर में उसे इतना भी अधिकार नही कि वह भीख तक दे सके। सुजान ने कभी न उसे मारा, ना पैसे की कमी की। बीमारी में उसे वैद्य के पास ले जाता। अब उसे अपने बेटे ही सब कुछ लगते है।
प्रश्न 5.
चैत के महीने में खलिहानों में सतयुग के राज का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चैत के महीने में जगह-जगह अनाज के ढेर लगते है। वही समय होता है जब किसानों की भी थोडी देर के लिए अपना जीवन सफल मालूम होता हैं। अच्छी फसल बढी देखकर, कटाई कर जब वे अनाज के ढेर को लगा देते है, तब गर्व से उनका हृदय उछलने लगता है। सुजान भी टोकरे में अनाज भर-भरकर देते और उनके दोनों लड़के वह घर में रख आते। भाट और भिक्षुक तब भीख माँगने आते। तब खलीहानों में सचमुच सतयुग का राज़ होता है।
प्रश्न 6.
सुजान भगत भिक्षुक को कैसे संतुष्ट करता है?
उत्तर:
एक बार निराश होकर लोटे भिक्षुक को सुजान कहते हैं उस अनाज के ढेर से जितना अनाज उठाकर ले जा सको जाओ। भिक्षुक ने पहले 10 सेर अनाज अपने चादर में भरा लेकिन सुजान, ने इसे तो कोई बच्चा भी उठालेगा कहकर उस चादर में खुद इतना अनाज भरा कि उससे वह गठरी हिली नही। तब सुजान ने पता कराया कि वह अमोला में रहता है फिर गठरी खुद अपने सिर पर उठाकर भिक्षुक को पीछे चला। इस तरह उसने भिक्षुक को संतुष्ठ किया।
प्रश्न 7.
सुजान भगत अपना खोया हुआ अधिकार फिर कैसे प्राप्त करता है?
उत्तर:
बेटे और पत्नी से जो अनादर हुआ, उससे सुजान बहुत ही चिंतित था। उसे लगा कि अब तक जिस घर में राज किया, उसी घर में पराधीन बनकर वह नहीं रह सकता। उसे अधिकार चाहिए। वह इस घर पर दूसरों का अधिकार नहीं देख सकता। मंदिर का पुजारी बनकर नहीं रह सकता। उसी क्षण से वह कठोर परिश्रम करने लगा। रात भर बैलों का चारा काटता रहा, सुबह तक कटिया का पहाड़ खड़ा कर दिया। सवेरे ही हल लेकर खेत में पहुँचा। भोला जब किसानों के साथ हल लेकर खेत में पहुंचा तब तक सुजान आधा खेत जोत चुका था। दोपहर में भी विश्राम नहीं किया। डाँड फेंकना, अनाज बोना, खेत की सुरक्षा आदि इस प्रकार आठ महीने निरंतर परिश्रम किया। खेत ने सोना उगल दिया। बखारी में अनाज रखने की जगह न रही। इस तरह सुजान ने अपना खोया हुआ अधिकार फिर प्राप्त कर लिया।
अतिरिक्त प्रश्न :
प्रश्न 1.
भगतों के आचार-विचार कैसे होते हैं?
उत्तर:
भगतों के आचार-विचार कुछ और होते हैं। वह बिना स्नान किये कुछ नहीं खाता। गंगा जी अगर घर से दूर हों और वह रोज़ स्नान करके दोपहर तक घर न लौट सकता हो, तब भी पर्यों के दिनों में तो जरूर नहाना चाहिए। उसके घर भजन भाव अवश्य होना चाहिए। पूजा-अर्चना उसके लिए अनिवार्य है। खान-पान में संयम और झूठ का त्याग करना पड़ता है। भगत के लिए, ज्ञानी के लिए क्षमा नहीं है। प्रायश्चित नहीं है। अगर वह है भी तो बहुत कठिन है। इस प्रकार भगतों के आचार-विचार साधारण मनुष्यों के आचार-विचार से अलग होते हैं।
प्रश्न 2.
सुजान ने भिक्षुक को क्या देना चाहा और उसका परिणाम क्या हुआ?
उत्तर:
सुजान भगत भिक्षुक को भीख देने के लिए अनाज लेने भंडार घर में गये। वे एक छबड़ी में सेर भर जौ लेकर निकले। तभी अचानक भोला ने उनके हाथ से छबड़ी छीन ली और क्रोध से बोला – सेंत का माल नहीं है, जो लुटाने चले हो। छाती फाड़-फाड़ कर काम करते हैं, तब दाना घर में आता है। इस प्रकार भोला ने सुजान भगत को अपमानित किया।
III. निम्नलिखित वाक्य किसने किससे कहे?
प्रश्न 1.
‘धरम के काम में मीन-मेष निकालना अच्छा नहीं।
उत्तर:
यह वाक्य सुजान ने अपनी पत्नी बुलाकी से कहा।
प्रश्न 2.
‘दिन भर एक न एक खुचड़ निकालते रहते हैं।’
उत्तर:
यह वाक्य भोला ने अपनी माँ बुलाकी से कहा।
प्रश्न 3.
आधी रोटी खाओ, भगवान का भजन करो और पड़े रहो।’
उत्तर:
यह वाक्य बुलाकी ने अपने पति सुजान भगत से कहा।
प्रश्न 4.
‘क्रोधी तो सदा के हैं। अब किसी की सुनेंगे थोड़े ही।’
उत्तर:
यह वाक्य बुलाकी ने अपने बेटे भोला से कहा।
प्रश्न 5.
‘बाबा, इतना मुझसे उठ न सकेगा।’
उत्तर:
यह वाक्य भिक्षुक ने सुजान भगत से कहा।
प्रश्न 6.
‘आदमी को चाहिए कि जैसा समय देखे वैसा काम करे।’
उत्तर:
बुलाकी ने यह वाक्य सुजान से कहा।
अतिरिक्त प्रश्न :
प्रश्न 1.
‘मैं संझा को डाँड फेंक दूंगा।’
उत्तर:
भोला ने सुजान से कहा।
प्रश्न 2.
‘अच्छा, बताओं किस गाँव में रहते हो?’
उत्तर:
यह भगत ने भिक्षुक से कहा।
IV. ससंदर्भ स्पष्टीकरण कीजिए :
प्रश्न 1.
‘भगवान की इच्छा होगी, तो फिर रुपये हो जायेंगे। उनके यहाँ किस बात की कमी है?’
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘सुजान भगत’ नामक कहानी से लिया गया है जिसके लेखक प्रेमचंद हैं।
संदर्भ : प्रस्तुत वाक्य को सुजान भगत ने बुलाकी से कहा कि ईश्वर के यहाँ किस बात की कमी है।
स्पष्टीकरण : एक बार जब गया के यात्री गाँव में आकर ठहरे, तो सुजान के यहाँ उनका भोजन बना। सुजान के मन में भी गया जाने की बहुत दिनों से इच्छा थी। यह अवसर देखकर वह भी चलने को तैयार हो गया। लेकिन बुलाकी ने कहा की अगले साल देखेंगे, हाथ खाली हो जाएगा। तब सुजान ने अगले साल क्या होगा, कौन जानता है, धर्म के काम को टालना नहीं चाहिए, ऐसा कहते हुए इस वाक्य को कहा।
प्रश्न 2.
‘अभी ऐसे बूढ़े नहीं हो गए कि कोई काम ही न कर सकें।
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘सुजान भगत’ नामक कहानी से लिया गया है जिसके लेखक प्रेमचंद हैं।
संदर्भ : प्रस्तुत वाक्य को भोला अपने पिता के बारे में अपनी माँ बुलाकी से कहता है।
स्पष्टीकरण : एक दिन बुलाकी ओखली में दाल छाँट रही थी। एक भिखमँगा द्वार पर आकर चिल्लाने लगता है। भोला माँ से उसे कुछ देने के लिए कहता है, तो बुलाकी पूछती है कि तुम्हारे पिताजी क्या कर रहे हैं, तो व्यंग्य से भोला कहता है कि दिन भर एक न एक खुचड़ निकालते रहते हैं, सारा दिन पूजा-पाठ में ही निकल जाता है और अभी ऐसे बूढ़े नहीं हुए। इससे हमें पता चलता है कि सुजान का अनादर घर में कैसे होता रहा।
प्रश्न 3.
‘आदमी को चाहिए कि जैसा समय देखे वैसा काम करे।
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘सुजान भगत’ नामक कहानी से लिया गया है जिसके लेखक प्रेमचंद हैं।
संदर्भ : प्रस्तुत वाक्य को बुलाकी अपने पति सुजान भगत से कहती है।
स्पष्टीकरण : सुजान महतो सुजान भगत बने, तो घर में उनका राज समाप्त हो गया। महत्वपूर्ण निर्णय माँ और बेटे ही लेते थे। जब द्वार पर चिल्ला रहे भिक्षुक को एक सेर अनाज तक दान देने की स्वतंत्रता सुजान खो देता है, उसे बड़ा दुःख हुआ। सबसे ज्यादा गुस्सा उसे अपनी पत्नी बुलाकी पर आया क्योंकि वह जानती थी कि कितनी मेहनत से उन्होंने इस घर को बनाया है। वे उदास होकर पेड़ के नीचे बैठकर सोचते रहते हैं, तब उनकी पत्नी आकर समझाने का प्रयत्न करती है कि घर में कमानेवाले का राज होता है। अब हम दोनों का निबाह इसी में है कि नाम के मालिक बने रहें और वही करें जो लड़कों को अच्छा लगे। आदमी को चाहिए कि जैसा समय होता है वैसा काम करे। इसी से जीवन सुगम होता है।
प्रश्न 4.
‘अब तक जिस घर में राज्य किया, उसी घर में पराधीन बनकर नहीं रह सकता।’
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘सुजान भगत’ नामक कहानी से लिया गया है जिसके लेखक प्रेमचंद हैं।
संदर्भ : प्रस्तुत वाक्य को सुजान भगत जब अपने ही घर में वह अपने आपको तिरस्कृत होता हुआ देखकर अपनी पत्नी बुलाकी से कहता है।
स्पष्टीकरण : जब सुजान भगत को पत्नी और पुत्रों से कुछ-न-कुछ सुनना पड़ता है, तो वह परेशान हो जाता है और अपनी पत्नी से कहता है कि एक समय था कि इस घर में मेरा ही राज था, पर आज मैं पराधीन हो गया हूँ। इस प्रकार वह अपनी मजबूरी बताता है।
प्रश्न 5.
‘अच्छा, तुम्हारे सामने यह ढेर है। इसमें से जितना अनाज उठाकर ले जा सको, ले जाओ।’
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘सुजान भगत’ नामक कहानी से लिया गया है जिसके लेखक प्रेमचंद हैं।
संदर्भ : सुजान भगत अपने द्वार पर आये हुए भिक्षुक से यह वाक्य कहता है।
स्पष्टीकरण : चैत का महीना था। हर जगह अनाज के ढेर लगे थे। किसानों को अपना जीवन सफल लगता है। सुजान भगत टोकरे में अनाज भर देता था और उसके दोनों लड़के टोकरे लेकर घर में अनाज रख आते थे। कई भिक्षुक भगतजी को घेरे हुए थे। उनमें आठ महीने पहले भगत के द्वार से निराश लौटकर गया हुआ भिक्षुक भी था। भगत ने उस भिक्षुक से पूछा कि क्यों बाबा आज कहाँ चक्कर लगाकर आये? तब भिक्षुक ने कहा कि अभी तो कहीं नहीं गया भगतजी, पहले तुम्हारे पास आया हूँ। तब सुजान भगत ने उस भिक्षुक से कहा कि “अच्छा, तुम्हारे सामने यह ढेर है। इसमें से जितना अनाज उठाकर ले जा सको, ले जाओ।”
प्रश्न 6.
‘जिसमें लाग नहीं, गैरत नहीं, वह जवान भी मृतक है।’
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘सुजान भगत’ नामक कहानी से लिया गया है जिसके लेखक प्रेमचंद हैं।
संदर्भ : लेखक प्रेमचंद ने पाठकों को लगन और मेहनत से किए गए परिश्रम के महत्व को बताया है।
स्पष्टीकरण : लेखक ने मानव जीवन में लाग के महत्व को समझाते हुए कहा है कि जिसमें लाग है, वह बूढ़ा भी जवान व्यक्ति के समान है, और जिसमें लाग नहीं वह जवान भी मृतक के समान है।
सुजान ने आठ महीने अविरल परिश्रम करने के उपरान्त सुख और अपने खोए हुए अधिकार को आज पुनः प्राप्त किया था। वह सुजान की लाग थी, उसी लाग और मेहनत ने सुजान को अमानुषीय बल प्रदान किया था।
अतिरिक्त प्रश्न :
प्रश्न 1.
‘कहाँ आटा रखा है, लाओ, मैं ही निकालकर दे आऊँ। तुम रानी बनकर बैठो।’
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत वाक्य हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ की ‘सुजान भगत’ नामक कहानी से लिया गया है। इस पाठ के लेखक प्रेमचंद हैं।
संदर्भ : यह वाक्य सुजान भगत अपनी पत्नी बुलाकी को कहता है।
स्पष्टीकरण : एक भिक्षुक सुजान भगत के द्वार पर आकर भीख के लिए चिल्लाने लगा। बुलाकी दाल छाँट रही थी; इसलिए जा नहीं पाई। सुजान का बेटा अपनी माँ बुलाकी से पिता की शिकायत करता है कि वे दान पुण्य के चक्कर में घर को चौपट करने में लगे हैं। तभी सुजान देखते हैं कि भिक्षुक अब भी चिल्ला रहा है और घर से कोई भीख लेकर नहीं गया है। तब वह घर के अन्दर जाकर कठोर स्वर में बोलता है – तुम लोगों को कुछ सुनाई नहीं देता कि द्वार पर कौन घंटे भर से खड़ा भीख माँग रहा है। एक छन भगवान का काम भी तो किया करो। तब बुलाकी कहती है – तुम भगवान का काम करने को बैठे ही हो, क्या घर भर भगवान का ही काम करेगा? बुलाकी का यह उत्तर सुनकर सुजान कहतें हैं – कहाँ आटा रखा है, लाओं, मैं ही निकालकर दे आऊँ। तुम रानी बनकर बैटो।
V. वाक्य शुद्ध कीजिए :
प्रश्न 1.
सुजान एक पक्का कुँआ बनवाया।
उत्तर:
सुजान ने एक पक्का कुँआ बनवाया।
प्रश्न 2.
प्रातः काल स्त्री और पुरुष ‘गया’ चला गया।
उत्तर:
प्रातःकाल स्त्री और पुरुष ‘गया’ चले गए।
प्रश्न 3.
मुझसे कल बहुत बड़ा भूल हुआ।
उत्तर:
मुझसे कल बहुत बड़ी भूल हुई।
प्रश्न 4.
उसके हाथ काँप रही थी।
उत्तर:
उसके हाथ काँप रहे थे।
प्रश्न 5.
सब यही कहेंगे कि भिक्षुक कितनी लोभी है।
उत्तर:
सब यही कहेंगे कि भिक्षुक कितना लोभी है।
VI. कोष्टक में दिए गए कारक चिह्नों से रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए : (ने, से, की, का, को)
प्रश्न 1.
चैत …………. महीना था।
उत्तर:
का
प्रश्न 2.
जो खर्च करता है, उसी …………… देता है।
उत्तर:
को
प्रश्न 3.
अब इन व्यापारों ………….. उसे घृणा होती थी।
उत्तर:
से
प्रश्न 4.
भिक्षुक …………. भोला की ओर संदिग्ध नेत्रों से देखा।
उत्तर:
ने
प्रश्न 5.
तुम्हारे बेटों ………… तो कमाई है।
उत्तर:
की
VII. निम्नलिखित वाक्यों को सूचनानुसार बदलिए :
प्रश्न 1.
सुजान के खेत में कंचन बरसता है। (भविष्यत्काल में बदलिए)
उत्तर:
सुजान के खेत में कंचन बरसेगा।
प्रश्न 2.
सुजान के मन में तीर्थ यात्रा करने की इच्छा थी। (वर्तमान काल में बदलिए)
उत्तर:
सुजान के मन में तीर्थयात्रा करने की इच्छा है।
प्रश्न 3.
शंकर गाड़ी में नारियल भर कर लाता है। (भूतकाल में बदलिए)
उत्तर:
शंकर गाड़ी में नारियल भर कर लाता था।
VIII. अन्य लिंग रूप लिखिए :
भिखारी, पुजारी, आदमी, पिता, विद्वान, साधु, भगवान, स्त्री।
- भिखारी – भिखारिन
- पुजारी – पुजारिन
- आदमी – औरत
- पिता – माता
- विद्वान – विदुषी
- साधु – साध्वी
- भगवान – भगवती
- स्त्री – पुरुष
IX. अन्य वचन रूप लिखिए :
घर, बात, अभिलाषा, लड़का, रोटी, भिक्षुक, महीना, टीका।
- घर – घर
- बात – बातें
- अभिलाषा – अभिलाषाएँ
- लड़का – लड़के
- रोटी – रोटियाँ
- भिक्षुक – भिक्षुक
- महीना – महीने
- टीका – टीकाएँ
X. विलोम शब्द लिखिए :
मुरझाना, जीवन, सुख, आशा, भलाई, सुंदर, मुश्किल।
- मुरझाना × खिलना
- जीवन × मृत्यु
- सुख × दुःख
- आशा × निराशा
- भलाई × बुराई
- सुंदर × कुरूप
- मुश्किल × आसान
XI. लिंग पहचानिए :
नम्रता, द्वार, इच्छा, बात, गुड़, कमाई, ढोलक, मजूरी, दूध, घी, चिंता, चारपाई, पानी, रोटी, अनाज, भोजन, धन, आँख, रूपया, फसल।
- पुल्लिंग शब्द : द्वार, गुड़, दूध, घी, पानी, अनाज, भोजन, धन, रूपया।
- स्त्रीलिंग शब्द : नम्रता, इच्छा, बात, कमाई, ढोलक, मजूरी, चिंता, चारपाई, रोटी, आँख, फसल।
सुजान भगत लेखक परिचय :
उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 ई. को काशी के निकट लमही नामक गाँव में हुआ था। आपके पिता का नाम अजायबराय तथा माता का नाम आनंदी देवी था। आपका जीवन बहुत ही संघर्षपूर्ण रहा। आपने घर पर ही पढ़कर इण्टरमीडियट एवं बी.ए. की परीक्षाएँ उत्तीर्ण की। आप पहले नवाबराय के नाम से उर्दू में लिखते थे, बाद में प्रेमचंद के नाम से हिन्दी में लिखने लगे। आपने हिन्दी में लगभग 300 कहानियाँ लिखी हैं जो ‘मानसरोवर’ के आठ भागों में संकलित हैं। आपकी कहानियाँ आदर्शोन्मुख यथार्थवादी हैं। आपकी शैली में सरलता, सजीवता एवं प्रभावोत्पादकता है। मुहावरेदार भाषा का प्रयोग आपकी विशेषता है। 8 अक्तूबर 1936 ई. को आपका स्वर्गवास हुआ।
- उपन्यास : ‘सेवासदन’, ‘प्रेमाश्रम’, ‘रंगभूमि’, ‘निर्मला’, ‘कर्मभूमि’, ‘गबन’, ‘गोदान’ आदि।
- नाटक : ‘कर्बला’, ‘संग्राम’, ‘प्रेम की वेदी’ आदि।
- निबंध : ‘साहित्य का उद्देश्य’, ‘स्वराज्य के फ़ायदे’, ‘कुछ विचार’ आदि।
पाठ का आशय : ‘सुजान भगत’ कहानी का परिवेश ग्राम्य जीवन है। किसान सुजान के सुजान भगत बनने के बाद गाँव में उसकी प्रतिष्ठा बढ़ जाती है लेकिन अपने ही घर में उसका अनादर होता है। पुत्र और पत्नी द्वारा उपेक्षित भगत अत्यधिक परिश्रम कर ऐसी फसल उगाता है कि बखारी में अनाज रखने को जगह नहीं मिलती। इस तरह वह अपना खोया हुआ अधिकार फिर प्राप्त करता है।
कठिन परिश्रम करने से ही मानव को धन-दौलत, मान-मर्यादा आदि प्राप्त होती है – यही इस कहानी का संदेश है।
सुजान भगत Summary in Hindi
‘सुजान भगत’ प्रेमचंद की श्रेष्ठ कहानियों में से एक है। इसमें ग्राम्य-जीवन की झांकी प्रस्तुत की गई है। संपूर्ण कहानी में सुजान भगत ही मुख्य पात्र है। सुजान की पत्नी का नाम बुलाकी है। बड़ा बेटा भोला है और छोटा बेटा शंकर।
सुजान भोला-भाला किन्तु एक सज्जन, परोपकारी किसान है। गर्मी, सर्दी तथा वर्षा में भी पसीना बहाकर खेती का काम करता है। सीधे-सादे किसान धन हाथ आते ही धर्म और कीर्ति की ओर झुकते हैं। सुजान की चित्तवृत्ति भी धर्म की ओर झुकने लगी। साधु-संतों का सत्कार, मेहमानों का जमघट, थानेदार अफसरों की चौपाल, भजन-भाव आदि होने लगे।
सुजान अति विनम्र-उदार बनकर सेवा-चाकरी करता, परन्तु घमंड नहीं। दूसरों के खेतों को पानी देता। लेकिन चेतन-जगत में आकर सुजान भगत कोरे भगत रह गया, तो उसके हाथों से अधिकार छीने जाने लगे। गाँव में भगत का सम्मान था, परन्तु घर में अनादर। लड़के उनकी चाकरी तो खूब करते, परन्तु अधिकार उनके हाथ में न था। वह अब घर का स्वामी नहीं, बल्कि मंदिर का देवता था।
पेड़ के नीचे बैठकर सुजान सदा विचारों में मग्न रहता। वह कोई अपाहिज नहीं, घर का सब काम करता है, फिर भी यह अनादर! अब वह द्वार का कुत्ता है, जो रूखा-सूखा मिले, वही खाकर पड़ा रहता। ऐसे जीवन को धिक्कार है। उसने रात-दिन मेहनत करके पसीना बहाया, सबकुछ सहा, पर आज भीख तक देने का अधिकार उसे नहीं है।
सुजान की पत्नी बुलाकी भी भगत का विरोध करती है। अब उसे बच्चे प्यारे लगते हैं और पति निखटू। बेटे के लिए माँ और माँ के लिए बेटे। सुजान तो मानो बाहर का आदमी है।
चैत का महीना था। जगह-जगह अनाज के ढेर लगे हुए थे। यही किसानों का सफल जीवन है। सुजान अनाज भरकर देता और बेटे अंदर रख आते। कितने ही भाट और भिक्षुक भगत को घेरे रहते। जो भिक्षुक आठ महीने पहले भगत के द्वार से निराश लौटा था, उसे भगत ने आज खूब-सारा अनाज देकर विदा किया। सुजान को इसमें बड़ा आनन्द मिलता था।
आठ महीने के निरंतर परिश्रम का सुजान को फल मिला था। आज उसको अपना खोया हुआं अधिकार फिर मिल गया था। मानव-जीवन में लगन महत्व की वस्तु है। लगन से बूढ़ा भी जवान बन जाता है। सुजान में लगन और मेहनत थी। अतः उसे अमानुषीय बल मिला। भोला से कहा – ये भाट और भिक्षुक खड़े हैं, कोई खाली हाथ न लौटने पाये। भोला सिर झुकाये खड़ा था। उसे कुछ बोलने का हौसला न हुआ। वृद्ध पिता ने उसे परास्त कर दिया था।
सुजान भगत Summary in Kannada
सुजान भगत Summary in English
‘Sujaan Bhagat’ is one of Premchand’s most notable stories. In the story, Premchand very delicately and passionately brings out the issue of self-respect. He says through his story that, be it a sexagenarian or a youth when it comes to the question of one’s self-respect one can go to any extent to protect it. Sujaan Bhagat is the central character around whom the story revolves. His wife is Bulaki. His older son is named Bhola, while the younger son is named Shankar.
Sujaan is an unassuming but well natured, altruistic farmer. Through the heat and cold and rain, Sujaan works hard on his fields. For several years Sujaan’s crop yields well and it rains riches for him. That is enough to turn him towards the observation of religious and moral prescriptions. Simple-minded farmers, once they become affluent, turn towards religion and want to gain social prominence. Faith and religion became Sujaan’s new passions. Paying respects to saints and ascetics, the assembling of visitors, the gathering of police officers, the singing of devotional prayers and songs – all of these became everyday affairs.
Sujaan offered his service with a gentle and tolerant attitude and was never arrogant. He irrigated the fields of his neighbours. Since there weren’t enough wells in the village, Sujaan had a well dug, and directed the water to his neighbours’ fields. However, after becoming pious and devoted to God, Sujaan Bhagat became a much disappointed and defeated version of his earlier self. Slowly, the authority and decision-making power began to slip out of his hands.
Bhagat was a highly respected man in the village, but within his home, he was not shown any respect. His boys did him every service and attendance that was expected, but there was no real power in the hands of Sujaan Bhagat anymore. He was no longer the lord of his house, but an idol in the temple.
Sitting under a tree, Sujaan would always be lost in his thoughts. He was not a handicapped person; in fact, he did all the household chores expected of him and yet, he was not given any respect in his own house! He was now treated like a dog guarding the house – he had to make do with whatever leftovers were thrown at him. Sujaan had nothing but disdain for this kind of lifestyle that his family was forcing him to live. He had worked day and night, borne all the troubles of the world, and today, even the right to donate and give alms was denied to him.
Gradually, all of Sujaan’s rights and privileges were withdrawn. Nobody consulted Bhagatji about anything. Neither the two sons nor Bulaki, looked up to Sujaan. They began to settle matters by themselves. Sujaan’s credibility and estimation were on the rise among the village folk but within his own household, it was on the decline. He was no longer the patriarch of the household.
Sujaan had become a non-entity in his own house. He lay in bed thinking over it for a long time. Sometime in the middle of the night he got up and began to chop the food for the oxen in the chopper. He worked so hard that never in the past had he exerted himself so much. Whatever grass the sons collected every day was insufficient for the oxen. When Bulaki woke up early the next morning she noticed a huge heap of chopped fodder in the courtyard. Everyone at home was surprised to see it.
By the time his son Bhola arrived at the field, Sujaan had already ploughed half the field. In the afternoon, all the farmers released their oxen and stopped work. Only Sujaan continued to work. Bhola was very tired but he did not have the courage to stop work. Finally, with a great deal of apprehension, he requested his father to stop tilling and Sujaan consented. Bhola began to return home with the oxen but Sujaan continued to scatter the seeds. He returned home after half an hour. After some time, Sujaan lifted the plough and began to walk towards the fields. A sleepy Bhola saw his father walk out of the house carrying the plough but could not bring himself to get up. He had never worked so hard because he had inherited a readymade domestic sphere which he had been managing somehow. Sujaan’s hard work became the talk of the entire village.
It was the month of Chait/Chaitra (first month of the Hindu year). The fields had yielded their crop. Heaps of grain were piled up in several places. This was the time when the farmers realised the worth of their laborious toil – when their hearts filled up with pride for the success that they had reaped. Sujaan filled up the wicker baskets with grain and passed them on to his sons who dispatched them to their house. A considerable number of beggars, tramps and flatterers gathered around Sujaan Bhagat, hoping to receive something. Among them was the sadhu who had approached their house about eight months ago and had to return from their doorstep disappointed. Sujaan not only gave him enough grain but also carried it himself to his village. Today, he had been able to restore the respect he had lost.
After eight months of hard work and toil, Sujaan was getting the fruits of his labour. That day, he also regained all the authority and decision-making power that he had lost. Love and affection is a very important part of human life. It can make an old man young again. Sujaan was filled with love and affection. He looked at Bhola with eyes full of pride and proclaimed, “None of the fakirs and tramps standing here should leave empty-handed”. Bhola stood there with his head bowed low. He did not have the courage to say anything. He had been defeated by his elderly father.
कठिन शब्दार्थ :
- धूनी – अग्निकुण्ड;
- चारों पदार्थ – पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष);
- डाँड – लकड़ी;
- मडैया – छोटा छप्पर;
- फब्तियाँ – व्यंग्य;
- खुचड़ – दोष;
- घोंघा – निरुपयोगी;
- छबड़ी – टोकरी;
- करवी – चारा;
- गँडासा – चारा काटने का औज़ार;
- कटिया – कटा हुआ चारा;
- बखारी – धान्य-भण्डार;
- भाट – प्रशंसक;
- बेंग – फसल की अमानत में दिया जानेवाला उधार;
- लाग – लगन, लगाव;
- गैरत – लज्जा, हया, शर्म
मुहावरे :
- कंचन बरसना – आमदनी बढ़ना;
- फूले न समाना – अत्यधिक खुश होना;
- मुँह की खाना – हार जाना;
- पत-पानी बनाना – सम्मान बढ़ाना;
- दम न लेना – कठिन परिश्रम करना;
- कमर सीधी करना – आराम करना;
- तिनक जाना – क्रोधित होना;
- नाम जगाना – कीर्ति पाना।