2nd PUC Hindi Textbook Answers Sahitya Gaurav Chapter 15 कायर मत बन

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Karnataka 2nd PUC Hindi Textbook Answers Sahitya Gaurav Chapter 15 कायर मत बन

कायर मत बन Questions and Answers, Notes, Summary

I. एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए :

प्रश्न 1.
कवि नरेन्द्र शर्मा क्या न बनने का संदेश देते हैं?
उत्तर:
कवि नरेन्द्र शर्मा कायर न बनने का सन्देश देते हैं।

प्रश्न 2.
कौन राह रोकता है?
उत्तर:
पाहन (पत्थर) राह रोकता है।

प्रश्न 3.
कवि नरेन्द्र शर्मा के अनुसार मनुष्य को किसने सींचा है?
उत्तर:
कवि नरेन्द्र शर्मा के अनुसार मनुष्य को मानवता ने सींचा है।

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प्रश्न 4.
कवि नरेन्द्र शर्मा मनुष्य को किसके बल पर जीतने को कहते हैं?
उत्तर:
कवि नरेन्द्र शर्मा कहते हैं कि या तो प्रीति के बल पर जीत, या दुश्मन तेरा पैर स्वयं चूमे, ऐसी जीत हासिल कर।

प्रश्न 5.
कवि नरेन्द्र शर्मा के अनुसार प्रतिहिंसा क्या है?
उत्तर:
कवि के अनुसार प्रतिहिंसा दुर्बलता है।

प्रश्न 6.
कवि नरेन्द्र शर्मा ने किसे अधिक अपावन कहा है?
उत्तर:
कवि की दृष्टि में कायरता अधिक अपावन है।

प्रश्न 7.
कवि नरेन्द्र शर्मा किसके सामने आत्मसमर्पण न करने के लिए कहते हैं?
उत्तर:
कवि नरेन्द्र शर्मा दुष्ट के सामने आत्मसमर्पण न करने के लिए कहते हैं।

अतिरिक्त प्रश्न :

प्रश्न 1.
कवि नरेन्द्र शर्मा के अनुसार मनुष्य को कैसे नहीं जीना चाहिए?
उत्तर:
कवि नरेन्द्र शर्मा के अनुसार मनुष्य को कायरतापूर्वक नहीं जीना चाहिए।

प्रश्न 2.
मानवता ने मनुष्य को कैसे सींचा है?
उत्तर:
मानवता ने मनुष्य को खून पसीना बहाकर सींचा है।

प्रश्न 3.
युद्ध के समय क्या नहीं करना चाहिए?
उत्तर:
युद्ध के समय हमें पीठ नहीं फेरना चाहिए।

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प्रश्न 4.
कवि नरेन्द्र शर्मा के अनुसार मनुष्य के अंदर का मानव कैसा है?
उत्तर:
कवि नरेन्द्र शर्मा के अनुसार मनुष्य के अन्दर का मानव अमोल है।

प्रश्न 5.
कवि नरेन्द्र शर्मा क्या अर्पण करने के लिए कहते हैं?
उत्तर:
कवि नरेन्द्र शर्मा सर्वस्व अर्पण करने के लिए कहते हैं।

II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए :

प्रश्न 1.
‘कायर मत बन’ कविता के द्वारा कवि हमें क्या संदेश देते हैं?
उत्तर:
कवि इसमें मनुष्य को अपनी हिम्मत अपनी ताकत पर भरोसा कर, किसी भी परिस्थिति में दुनिया से टक्कर लेने को कह रहे है। परिस्थिति के सामने न झुकने, आह्वान उसे कवि यहाँ दे रहे है। दुनिया में जीते हुए हमप र कई कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, उन बाधाओं का नाश कर, बाधाओं के सामने घुटने न टेक इसलिए कवि कह रहे है कुछ भी बन बस कायर मत बना। हार मानकर जीना भी कोई जीना होता है। क्यों गम के आँसू बहाना, जब तक तुम्हारे अंदर मानवेता है, मानवता की रक्षा के लिए कितने लोगों का खून-पसीना बहा है। तो तुम क्या कुछ भी नही करोगे? बस मजबूर होकर रोते ही रहोगे? नही, ‘तू कुछ भी बन, बस कायर मत बना। कायरता वीरों को शोभा नही देता तुम हिम्मत से काम लेना यही संदेश कवि ने दिया है।

प्रश्न 2.
कवि नरेन्द्र शर्मा ने प्रतिहिंसा और कायरता के संबंध में क्या कहा है?
उत्तर:
कवि नरेन्द्र शर्मा ने ‘कायर मत बन’ कविता से हमें यह संदेश दिया है कि कुछ भी बन बस कायर मत बन। तुम कब तक दुःख के आँसू पीते रहोगे? धैर्य से जिन्दगी में बाधाओं पर जीत हासिल करो। प्रतिहिंसा भी दुर्बलता है पर कायरता उससे अधिक अपावन है। हिंसा के प्रति हिंसा करना मनुष्य की दुर्बलता है तो कायरता भी अधिक अपवित्र है। कभी दुष्टों के आगे आत्मसमर्पण मत करना। तुम्हें किसी से भी डरने की आवश्यकता नहीं है। कायरता को छोड़कर, धैर्य और साहस से जिन्दगी में आगे बढ़ना चाहिए।

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प्रश्न 3.
मानवता के प्रति कवि नरेन्द्र शर्मा के विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
कवि नरेन्द्र शर्मा ने ‘कायर मत बन’ कविता में मानव को कायर नहीं बनने का संदेश दिया है। कवि मानवता को अत्यधिक महत्व देते हुए दुष्टों के सम्मुख आत्मसमर्पण न करने के लिए कहते हैं। युगों तक खून-पसीना बहाकर, अत्यधिक परिश्रम से मानवता रूपी वृक्ष को जो निर्माण किया है, उसके तले आराम से जीना चाहिए। यदि कोई मूर्ख ‘युद्धम् देहि’ कहे तो उसका मुँह तोड़ जवाब देना चाहिए। या तो प्यार के बल पर से उसे जीतना चाहिए नहीं तो उसे सबक सिखाना चाहिए क्योंकि ‘मानव’ अमोल है। ले-दे कर जीना, जीना नहीं है। धैर्य और साहस से दुष्टों का विनाश करके प्रजा की रक्षा करनी चाहिए। व्यक्तिगत तौर पर भी हमेशा गम के आँसू पीते कब तक हम रह सकते हैं? साहस से कष्टों का सामना कर मानवता के पथ पर निरंतर आगे बढ़ना चाहिए।

III. ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए :

प्रश्न 1.
ले-देकर जीना क्या जीना?
कब तक गम के आँसू पीना?
मानवता ने सींचा तुझको
बहा युगों तक खून-पसीना।
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘कायर मत बन’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है, जिसके रचयिता नरेन्द्र शर्मा हैं।

संदर्भ : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने मनुष्य को कायर न बनने का संदेश देते हुए कहा है कि मनुष्य को मनुष्यता का ध्यान भी रखना अवश्यक है।

भाव स्पष्टीकरण : कवि इसमें मानवता को अत्यधिक महत्व देते हुए दुष्टों के सम्मुख आत्मसमर्पण न करने के लिए कहते हैं। हमेशा समझौता करके, हार के, ले-देकर जीना, जीना नहीं है। कब तक तुम दुःख के आँसू पीते हुए, कष्ट सहते ही रहोगे? मानवता ने तुमको अमृत जल से सींचा है। तुम्हें सुख भोगने का अधिकार है। इसलिए शत्रुओं से डटकर मुकाबला करो, कायरता छोड़ दो, साहसी बनो।

प्रश्न 2.
युद्धं देहि कहे जब पामर
दे न दुहाई पीठ फेर कर;
या तो जीत प्रीति के बल पर
या तेरा पद चूमे तस्कर।
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘कायर मत बन’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है, जिसके रचयिता नरेन्द्र शर्मा हैं।

संदर्भ : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने मनुष्य को कायर न बनने का संदेश देते हुए कहा है कि मनुष्य को मनुष्यता का ध्यान भी रखना अवश्यक है।

स्पष्टीकरण : कवि कह रहे हैं- हे मनुष्य! तुम कुछ भी बनो बस कायर मत बनो। अगर कोई दुष्ट या क्रूर व्यक्ति तुमसे टक्कर लेने खड़ा हो जाए, तो उसकी ताकत से डरकर तू पीछे मत हटना। पीठ दिखाकर भाग न जाना। संसार में कई ऐसे महापुरुष जन्मे हैं, जिन्होंने प्यार और सेवाभाव से दुष्टों के दिल को भी जीत लिया या पिघलाया है। क्योंकि हिंसा का जवाब प्रतिहिंसा से देना नहीं। प्रतिहिंसा भी दुर्बलता ही है, लेकिन कायरता तो उससे भी अधिक अपवित्र है। इसलिए हे मानव! तुम कुछ भी बनो लेकिन कायर मत बनो।

प्रश्न 3.
कुछ भी बन बस कायर मत बन।
ठोकर मार पटक मत माथा,
तेरी राह रोकते पाहन।
कुछ भी बन बस कायर मत बन॥
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के आधुनिक कविता ‘कायर मत बन’ से लिया गया है जिसके रचयिता नरेन्द्र शर्मा हैं।

संदर्भ : कवि मनुष्य को कायर न बनने का संदेश एवं मानवता को अत्यधिक महत्व देते हुए दुष्टों के सम्मुख आत्मसमर्पण न करने के लिए कहते हैं।

व्याख्या : प्रस्तुत पद्यांश में कवि मनुष्य को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे मानव तुम सब कुछ बनो किन्तु डरपोक या कायर मंत बनो। मार्ग में यदि पत्थर भी तुम्हारे मार्ग को रोकते हैं, तो ठोकर मार कर उन्हें वहाँ से हटा दो, किन्तु उनके सामने तुम झुको नहीं। माथा पटकना अर्थात् जीवन में आनेवाली कठिनाइयों से निराश होना व्यर्थ हैं।

विशेष : भाषा – शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली।
भाव – सरल, सरस एवं प्रवाहमय।

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प्रश्न 4.
तेरी रक्षा का न मोल है,
पर तेरा मानव अमोल है,
यह मिटता है, वह बनता है,
यही सत्य की सही तोल है
उत्तर:
प्रसंग : इस कवितांश को हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘कायर मत बन’ पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता नरेन्द्र शर्मा जी हैं।

संदर्भ : प्रस्तुत कविता में कवि मनुष्य को कायर न बनने का संदेश दे रहे हैं।

व्याख्या : कवि कह रहे हैं कि हे मनुष्य! तेरी रक्षा हो, इसका कोई मूल्य नहीं है। पर यह भी कटु सत्य है कि मानवता भी एक बहुमूल्य वस्तु है। यदि मनुष्य मानवता की रक्षा के लिए अपने को मिटा देता है, तभी मनुष्यता की, मानव जाति की रक्षा हो पाती है। सत्य का यही मानदंड है। अर्थात् जीवन अमूल्य है। इस पर कोई प्रश्न नहीं है लेकिन व्यक्ति जीवन से ज्यादा बहुमूल्य मानव जीवन है। मनुष्यता, मानव जीवन चलता रहता है। अगर मानव जीवन ही नष्ट हो गया तो मनुष्य भी कहाँ बचेगा। इसलिए मनुष्य को बलिदान के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए।

विशेष : खड़ी बोली का प्रयोग। प्रेरणादायक कविता।

अतिरिक्त प्रश्न :

प्रश्न 1.
यह मिटता है, वह बनता है,
यही सत्य की सही तोल है,
अर्पण कर सर्वस्व मनुज को,
कर न दुष्ट को आत्मसमर्पण,
कुछ भी बन बस कायर मत बन।
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के आधुनिक कविता ‘कायर मत बन’ से लिया गया है जिसके रचयिता नरेन्द्र शर्मा हैं।

संदर्भ : प्रस्तुत कविता में कवि ने मनुष्य को कायर न बनने का संदेश दिया है। कवि मानवता को अत्यधिक महत्त्व देते हुए दुष्टों के सामने हार नहीं मानने के लिए कहते हैं।

स्पष्टीकरण : कवि कहते हैं कि जब दुश्मन युद्ध के लिए ललकारे तब उसका वीरता से सामना करना चाहिए। कायरता सबसे बड़ी अपवित्र चीज है। इसलिए धैर्य और वीरता के साथ दुष्टों को पराजित करना चाहिए। तुम मानवता की रक्षा के लिए अपने को मिटा दो। तुम्हारा जीवन कीमती है लेकिन मानवता की रक्षा ज्यादा जरूरी है। मानवता अनमोल है। यही सत्य है। इसलिए दुष्ट के सामने आत्म समर्पण नहीं करके अपना तन-मन-धन मनुष्यता के लिए अर्पित कर दो। स्वयं को मानवता की रक्षा के लिए बलिदान भी होना पड़े तब बलिदान भी देना चाहिए। यही सत्य है। अगर दुष्टों का राज हो गया तो संपूर्ण मानवता खतरे में पड़ जाएगी।

विशेष : भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली के साथ-साथ ओजपूर्ण है।

कायर मत बन कवि परिचय :

नरेन्द्र शर्मा का जन्म 1913 ई. में उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के जहाँगीरपुर नामक गाँव में हुआ। आपने 1936 ई. में प्रयाग विश्वविद्यालय से एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण आपको जेल-यात्राएँ भी करनी पड़ीं। 1954 ई. में आपको मुंबई के आकाशवाणी केन्द्र में ‘विविध भारती’ कार्यक्रम का संचालक नियुक्त किया गया।

आपकी रचनाएँ : कविता-संग्रह : ‘प्रभात फेरी’, ‘शूल-फूल’, ‘प्रवासी के गीत’, ‘पलाश वन’, ‘मिट्टी और फूल’, ‘कदली वन’, ‘हंसमाला’, ‘रक्तचंदन’, ‘बहुत रात रोये’ आदि। ‘द्रौपदी’, ‘उत्तरजय’, तथा ‘सुवर्णा’ (खंड काव्य)।

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आपकी रचनाओं में श्रृंगारिकता, दार्शनिकता तथा प्रतीकात्मकता दृष्टिगोचर होती है। सामाजिक विषमताओं को भी आपने अत्यंत भावुक ढंग से अपने काव्य में स्थान दिया है। नरेन्द्र शर्मा की भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है, जिसमें भाषा की सरसता, मधुरता, प्रवाहमयता तथा सरलता विद्यमान है।

कायर मत बन कविता का आशय :

प्रस्तुत कविता में कवि ने मनुष्य को कायर न बनने का संदेश दिया है। कवि मानवता को अत्यधिक महत्व देते हुए दुष्टों के सम्मुख आत्मसमर्पण न करने के लिए कहते हैं।

कायर मत बन कविता का भावार्थ :

1) कुछ भी बन बस कायर मत बन।
ठोकर मार पटक मत माथा,
तेरी राह रोकते पाहन।
कुछ भी बन बस कायर मत बन।

कवि मनुष्य को सम्बोधित कर रहा है कि हे मानव! तुम सब कुछ बनो, किन्तु डरपोक मत बनो। मार्ग में यदि पत्थर भी तुम्हारे मार्ग को रोकते हैं, तो ठोकर मार उन्हें वहाँ से हटा दो; किन्तु उनके समक्ष झुको नहीं। माथा पटकना पाप है। अर्थात् जीवन में आने वाली कठिनाइयों से निराश होना व्यर्थ है।

2) ले-देकर जीना क्या जीना?
कब तक गम के आँसू पीना?
मानवता ने सींचा तुझको
बहा युगों तक खून-पसीना।
कुछ न करेगा? किया करेगा….
रे मनुष्य-बस कातर क्रंदन?
कुछ भी बन बस कायर मत बन।

कवि कह रहा है कि हे मानव! कलह कर जीना अच्छा नहीं है। इस तरह तुम दुःख के आँसू कब तक बहाते रहोगे? मनुष्यता ने तो बहुत समय तक अपना खून और पसीना बहाकर तुम्हें बढ़ाया है या तो तू कुछ नहीं करेगा? या फिर बस कायर की तरह बैठा-बैठा अपनी कमजोरी पर रोता रहेगा। तुम कुछ भी बनो किन्तु कायर मत बनो।

3) युद्धं देहि कहे जब पामर
दे न दुहाई पीठ फेर कर;
या तो जीत प्रीति के बल पर
या तेरा पद चूमे तस्कर।
प्रतिहिंसा भी दुर्बलता है,
पर कायरता अधिक अपावन
कुछ भी बन बस कायर मत बन।

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हे मानव! जब तुम्हें कोई युद्ध के लिए ललकारे तो पीठ फेरकर सहायता मत माँग। हे मानव! प्रेम के आधार पर प्राप्त विजय को तुम्हारा रास्ता चूमना चाहिए। क्या तुम यह नहीं जानते हो कि . बदला लेना भी अच्छा कार्य नहीं है। कायरता तो इससे भी अधिक गिरी हुई वस्तु है। इसलिए तुम सब कुछ बनो, किन्तु कायर मत बनो।

4) तेरी रक्षा का न मोल है,
पर तेरा मानव अमोल है,
यह मिटता है, वह बनता है,
यही सत्य की सही तोल है,
अर्पण कर सर्वस्व मनुज को,
कर न दुष्ट को आत्मसमर्पण,
कुछ भी बन बस कायर मत बन।

हे मनुष्य! तेरी रक्षा हो, इसका कोई मूल्य नहीं है। पर यह बात कटु सत्य है कि मानवता एक बहुमूल्य वस्तु है। जब मनुष्य अपने को मिटा देता है, तभी मानवता की रक्षा होती है। सत्य का यही मापदंड है। तुम मनुष्य के लिए अपना सब कुछ त्याग दो, किन्तु दुष्ट के सामने कभी मत झुको। तुम सब कुछ बनो, किन्तु कायर मत बनो।

कायर मत बन Summary in Kannada

कायर मत बन Summary in Kannada 1
कायर मत बन Summary in Kannada 2

कायर मत बन Summary in English

In this poem, the poet Narendra Sharma advises the reader not to be a coward.
The poet is imploring humanity to not be cowardly. The poet says’ that humans are free to be anything, but they must not be cowards. If there is a stone that is blocking one’s path, one must push it out of the way and move forward, rather than bow to the obstacle. Giving up is a crime, according to the poet.

The poet is advising mankind that it is not good to quarrel in life. How long can a person live a life of quarreling and fighting, and by shedding tears of pain? Humanity has spent countless years of toil, blood, and sweat to bring us to this stage. Thus, even without doing anything, we are doing something. The poet warns mankind not to cry over one’s weakness or cowardice. Once again, the poet tells the man that he is free to be anything but a coward.

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The poet tells mankind that when someone calls upon us to fight a war, we must not turn our back on them and ask others for help. The victory that is achieved through love must kiss the path that we tread. The poet asks the man if he does not know that taking revenge is not a good deed. However, cowardice is an even greater evil than revenge. Therefore, the poet tells the man to be everything except a coward.

The poet says that no price is too much for the protection of mankind. It is a fact that mankind and humanity are priceless. When a person destroys his or her ego, mankind and humanity are protected. This is the measure of truth. The poet tells the man that he may renounce everything for the sake of humanity and mankind, but should never bow in front of the wicked or evil. Once again, the poet reminds man that he may choose to become anything, but not a coward.

कठिन शब्दार्थ :

  • पाहन – पत्थर;
  • पामर – दुष्ट, नीच;
  • तस्कर – चोर, लुटेरा।

मुहावरे :

  • गम के आँसू पीना – दुख दर्द सहना।
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