1st PUC Hindi Textbook Answers Sahitya Vaibhav Chapter 27 शीत लहर

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Karnataka 1st PUC Hindi Textbook Answers Sahitya Vaibhav Chapter 27 शीत लहर

शीत लहर Questions and Answers, Notes, Summary

I. एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिएः

प्रश्न 1.
चंद्रप्रकाश का फ्लैट कहाँ था?
उत्तर:
चंद्रप्रकाश का फ्लैट द्वारकानगर के एक ग्रुप हाऊसिंग सोसाइटी में था।

प्रश्न 2.
सोसाइटी सभी फ्लैट मालिकों से प्रतिमाह रख-रखाव का कितना खर्च लेती थी?
उत्तर:
सोसाइटी सभी फ्लैट मालिकों से प्रतिमाह रख-रखाव का एक हजार रुपये खर्च लेती थी।

प्रश्न 3.
लक्ष्मीबाई नगर से द्वारका तक के रास्ते में लेखक किन्हें देखते हैं?
उत्तर:
लक्ष्मीबाई नगर से द्वारका तक के रास्ते में लेखक ने रेड लाइटों, चौराहों, पुलों के पास नंगे-अधनंगे स्त्री-पुरुष-बच्चों को काँपते-ठिठुरते देखा।

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प्रश्न 4.
चंद्रप्रकाश की पत्नी का नाम क्या है?
उत्तर:
चंद्रप्रकाश की पत्नी का नाम पूनम है।

प्रश्न 5.
चंद्रप्रकाश के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति कैसे जीना चाहता है?
उत्तर:
चंद्रप्रकाश के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति सम्मान के साथ जीना चाहता है।

प्रश्न 6.
भीख मांगना किसी भी व्यक्ति के लिए क्या है?
उत्तर:
भीख मांगना किसी भी व्यक्ति के लिए अपमानजनक होता है।

प्रश्न 7.
दरवाजा लॉक करते समय चन्द्रप्रकाश ने किसका जोड़ा देखा?
उत्तर:
दरवाजा लॉक करते समय चन्द्रप्रकाश ने कबूतरों का जोड़ा देखा।

प्रश्न 8.
चंद्रप्रकाश की ओर बच्चे किस नज़र से देख रहे थे?
उत्तर:
चंद्रप्रकाश की ओर बच्चे आशा और उत्सुकता की नज़र से देख रहे थे।

प्रश्न 9.
चंद्रप्रकाश ने बच्चों को कितने रुपये देने चाहे?
उत्तर:
चंद्रप्रकाश ने बच्चों को एक सौ रुपये देने चाहे।

अतिरिक्त प्रश्नः

प्रश्न 10.
‘शीत लहर’ कहानी के कहानीकार कौन है?
उत्तर:
‘शीत लहर’ कहानी के कहानीकार जयप्रकाश कर्दम हैं।

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प्रश्न 11.
चंद्रप्रकाश कहाँ नौकरी करते थे?
उत्तर:
चंद्रप्रकाश लक्ष्मीबाई नगर (दिल्ली) में नौकरी करते थे।

प्रश्न 12.
ग्रुप हॉऊसिंग सोसाइठी के अधिकांश लोग कहाँ रह रहे थे?
उत्तर:
ग्रुप हॉऊसिंग सोसाइठी के अधिकांश लोग सरकारी आवासों में रह रहे थे।

प्रश्न 13.
समूचा उत्तर भारत किसकी चपेट में था?
उत्तर:
समूचा उत्तर भारत शीत लहर की चपेट में था।

प्रश्न 14.
रैन बसेरों में कौन रात गुज़ार सकते हैं?
उत्तर:
रैन बसेरों में वे ही रात गुजार सकते हैं जो संचालकों को सुविधा शुल्क देने में समर्थ होते हैं।

प्रश्न 15.
चन्द्रप्रकाश को किस पर क्षोभ हुआ?
उत्तर:
चन्द्रप्रकाश को अपनी विवशता पर क्षोभ हुआ।

II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिएः

प्रश्न 1.
चंद्रप्रकाश सोसाइटी के फ्लैट में क्यों नहीं रहते थे?
उत्तर:
चंद्रप्रकाश का फ्लैट द्वारका टाऊनशिप के एक ग्रूप-हाऊसिंग सोसाइटी में था जो कि दिल्ली शहर से काफी दूर था। यहाँ बहुत कम लोग रहते थे। चंद्रप्रकाश के पास लक्ष्मीबाई नगर में चार कमरों वाला सरकारी आवास था, जो दिल्ली के बीचोंबीच था तथा सभी सुविधाएँ वहाँ उपलब्ध थी। इसलिए वह अपने फ्लैट में अभी जाना नहीं चाहता था। निवृत्त होने तक वह लक्ष्मीबाई नगर के सरकारी आवास में ही रहना चाहता था।

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प्रश्न 2.
दिल्ली में शीत लहर के प्रकोप का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जनवरी के आस-पास दिल्ली में शीत-लहर का प्रकोप प्रायः रहता है। दिल्ली में कड़ाके की ठंड थी। शरीर के भीतर से पार हो जानेवाली तेज हवा चल रही थी। कई दिन से सूरज नहीं निकला था। दिन में तापमान पन्द्रह डिग्री सेल्सियस से ऊपर नहीं जा रहा था। रात में पारा चार डिग्री सेल्सियस तक नीचे जा रहा था। कई साल के बाद दिल्ली में इतनी तेज ठंड पड़ी थी। समूचा उत्तरी भारत शीत लहर की चपेट में था। दिल्ली में दर्जनों लोगों की मौत हो चुकी थी। जगह-जगह अलाव जलाने की व्यवस्था की गई, गरीब लोगों को कम्बल बाँटे गए और स्कूलों को छुट्टी दी गई।

प्रश्न 3.
‘क्या जिन्दगी है इन लोगों की…! चंद्रप्रकाश के इस उद्गार पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
जब चन्द्रप्रकाश की पत्नी सरकारी रैन बसेरों को देखकर उनके प्रति अपनी सहानुभूति व्यक्त करती है, तब चंद्रप्रकाश कहते हैं- रैन बसेरों में वे ही रात गुजार सकते हैं, जो सुविधा शुल्क दे सकते हैं। गरीब लोगों के लिए नहीं हैं ये रैन बसेरे। इनके पास न खाने के लिए है, न पहनने के लिए। कुछ रुका और फिर धीरे से बुदबुदाया, “क्या जिंदगी है इन लोगों की…..।”

प्रश्न 4.
चंद्रप्रकाश अपने फ्लैट में बेघर लोगों को क्यों नहीं रख पाया?
उत्तर:
बेघर लोगों को ठंड में देखकर चंद्रप्रकाश को दया आ गई और वह उन लोगों को अपने खाली फ्लैट में रहने देना चाहता था। परन्तु उसकी पत्नी ने कहा – एक बार फ्लैट में आने के बाद तुम इनको बाहर नहीं निकाल पाओगे। अनजान आदमी का क्या भरोसा कि वह कैसा निकल जाए। यदि निकल भी जाए तो फ्लैट का सत्यानाश कर देंगे। सोसाइटी के सदस्यों ने भी विरोध किया। इसलिए चन्द्रप्रकाश चाहते हुए भी उन लोगों को अपने फ्लैट में नहीं रख पाया।

प्रश्न 5.
चंद्रप्रकाश का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
चन्द्रप्रकाश दिल्ली में निवास करनेवाला केन्द्र सरकार का अधिकारी था। आलीशान सरकारी आवास मिला हुआ था। यद्यपि अपना एक फ्लैट भी खरीदा था, परन्तु दूर होने तथा सुविधाविहीन होने के कारण वहाँ नहीं गया। चन्द्रप्रकाश पत्नी पूनम को बहुत चाहता था। बेघर लोगों को रहने के लिए अपना फ्लैट देना चाहता था, परन्तु पत्नी के समझाने और सोसाइटी के सदस्यों के विरोध के कारण नहीं दे पाया। स्वभाव से दयालु था, परन्तु मजबूरी थी।

प्रश्न 6.
चंद्रप्रकाश को अपनी विवशता पर क्यों क्षोभ हुआ?
उत्तर:
सर्दी में बेघर लोगों को ठिठुरते देख चंद्रप्रकाश का हृदय पिघल गया। वह अपना खाली फ्लैट उन्हें रहने के लिए देना चाहता था, परन्तु पत्नी के समझाने के बाद और सोसाइटी के सदस्यों का भी विरोध होने का कारण, इच्छा होते हुए भी चन्द्रप्रकाश उन गरीब लोगों की मदद नहीं कर पाया। वह चिंता जताता है- “इतनी भयंकर सर्दी का मुकाबला कैसे करेंगे ये बच्चे?” उसने बच्चों को सौ रुपये देने चाहे और कोट की जेब में हाथ डाला, लेकिन फिर यह सोचकर रुक गया कि “सौ रुपये देने से भी इनका क्या भला होगा? सौ रुपये इनको सर्दी से नहीं बचा सकते। फिर इनकी मदद कैसे करूँ?” उसे अपनी इस विवशता पर क्षोभ हुआ। अपना क्षोभ उसने सोसाइटी के पदाधिकारियों पर उतारा – “यदि सोसाइटी वाले अलाऊ कर दें, तो इसमें क्या हर्ज है!”

अतिरिक्त प्रश्नः

प्रश्न 7.
शीत लहर से काँपने वाले बेघर लोगों को देखकर चंद्रप्रकाश का मन क्यों पिघला?
उत्तर:
चन्द्रप्रकाश को कई जगहों पर रेड लाइटों, चौराहों, पुलों के पास नंगे-अधनंगे स्त्री-पुरुष और बच्चे शीत लहर से काँपते-ठिठुरते दिखाई दिए। लोगों की दयनीय हालत को देखकर चन्द्रप्रकाश
का मन पिघल उठा।

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प्रश्न 8.
चंद्रप्रकाश के फ्लैट का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चन्द्रप्रकाश का फ्लैट एक ग्रुप हाऊसिंग सोसाइठी में था। फ्लैट का दरवाजा एक बड़े कमरे में खुलता था जो ड्राईंग-कम-डाइनिंग रूम के रूप में इस्तेमाल के लिए था। एक सर्वेट रूम भी था। सर्वेन्ट रूम के साथ स्टोर रूम था। ड्राईंग रूम पार करने के बाद तीन बड़े कमरे थे। सब कमरों के साथ अलग-अलग लेट्रिन-बाथरूम थे। एक बड़ी रसोई भी थी। पूरी तरह धूप व हवादार कमरे थे। बिजली-पानी के कनेक्शन लगे हुए थे।

शीत लहर लेखक परिचयः

हिन्दी साहित्य के वर्तमान कथाकारों में डॉ. जयप्रकाश कर्दम का विशेष स्थान है। आपका जन्म 5 जुलाई 1958 ई. में ग्राम इंदरगढ़ी, गाजियाबाद, उत्तरप्रदेश में हुआ। आप एक प्रतिभासंपन्न दलित साहित्यकार हैं।
कृतियाँ : आपकी साहित्यिक कृतियाँ बहुचर्चित हैं जिनमें ‘तलाश’ (कहानी संग्रह); ‘करुणा’, ‘छप्पर’ (उपन्यास); ‘गूंगा नहीं था मैं’, ‘तिनका-तिनका आग’, ‘बस्तियों से बाहर’ (काव्य संग्रह) आदि प्रमुख हैं।

कहानी का आशयः

प्रस्तुत कहानी में शीतलहर के प्रकोप से त्रस्त आश्रयविहीन लोगों का मर्मस्पर्शी चित्रण किया गया है। इसमें एक ओर फटेहाल, नंग-अधनंगे स्त्री-पुरुष और बच्चों के शीतलहर में ठिठुरने का सजीव चित्रण है तो वहीं दूसरी ओर ऐसी मानसिकता वाले लोग हैं जो ‘जेन्टरी’ की बातें कर चन्द्रप्रकाश को अपने ही फ्लैट में बेघर लोगों को आश्रय देने से मना करते हैं। चन्द्रप्रकाश चाहते हुए भी मन मसोस कर रह जाता है। इस कथा में बेरोजगारी जैसी ज्वलंत समस्या पर भी प्रकाश डाला गया है।

गरीबी और फटेहाली से रात-दिन संघर्ष करते हुए लोगों के प्रति चन्द्रप्रकाश की संवेदना और छात्रों में दयापूर्ण भावना को विकसित करने हेतु इस पाठ का चयन किया गया है।

शीत लहर Summary in Hindi

चन्द्रप्रकाश कर्दम हिन्दी के दलित लेखकों में माने जाते हैं। इनकी कहानियों में प्रायः दलित वेदना का चित्रण मिलता है। ‘शीत लहर’ भी एक ऐसी ही कहानी है। सर्दी के दिनों में दिल्ली की सड़कों पर फुटपाथ पर नारकीय जीवन बिताने वाले गरीबों की दयनीय दशा का वर्णन इस कहानी में देखा जा सकता है। सभ्य समाज गरीबों के प्रति कैसा व्यवहार करता है, इसका मार्मिक चित्रण ‘शीत लहर’ में है।

चन्द्रप्रकाश दिल्ली में रहता था और केन्द्र सरकार का एक अधिकारी था। परिवार सहित सरकारी आवास में उसका निवास था। उसने बैंक से कर्ज लेकर द्वारका कॉलोनी में एक फ्लैट भी खरीदा था, जो इसके दफ्तर से काफी दूर था। इसलिए वह अपने निजी फ्लैट में न जाकर, सरकारी आवास में ही था। इच्छा थी कि किसी अच्छे आदमी को फ्लैट किराए पर दे देंगे।

चन्द्रप्रकाश प्रति मास अपनी पत्नी को साथ लेकर फ्लैट का निरीक्षण कर आता था। फ्लैट के रखरखाव का खर्चा भी सोसाइटी के कार्यालय में एक हजार रुपये दे आता।

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जनवरी का महीना था। इस बार दिल्ली में कड़ाके की सर्दी थी। सर्दी से सभी थर-थर कांपते थे। चन्द्रप्रकाश ने सड़क के दोनों ओर सर्दी से ठिठुरते हुए गरीब बच्चों, बूढ़ों को अपनी आँखों से देखा था। उन्हें देखकर उसका दिल पिघल गया। चन्द्रप्रकाश ने अपनी पत्नी से कहा – ये बेचारे कितने अभागे हैं! इनके पास न रहने के लिए छत है, न पहनने के लिए कपड़े और न खाने के लिए भोजन। पत्नी ने उपेक्षा से उत्तर दिया – ये लोग आलसी हैं। कुछ काम क्यों नहीं करते? हमें इनके प्रति कोई दया-दृष्टि दिखाने की आवश्यकता नहीं है। चन्द्रप्रकाश पत्नी की बातें चुपचाप सुनता रहा।

पूनम के साथ चन्द्रप्रकाश अपने घर पहुंचे। उन्होंने देखा कि मकान के अन्दर कई कबूतर अपना घर बना चुके हैं। गंदगी भी हो रही है। वह मन ही मन सोचने लगा – हजारों लोग सर्दी में बेघर होकर सड़कों पर दयनीय स्थिति में जीवन बिता रहे हैं और ये कबूतर आराम से रह रहे हैं। चन्द्रप्रकाश ने सोचा कि क्यों न उन बेघर लोगों को रहने के लिए अपना खाली फ्लैट कुछ दिनों के लिए दे दिया जाय। अपना विचार जब पत्नी के सामने रखा, तो साफ मना कर देती है। हाऊसिंग सोसाइटी के सदस्य भी कहते हैं कि पढ़े-लिखे, सभ्य समाज के बीच में इन लोगों को बसाना उचित नहीं होगा। हम लोग इसकी अनुमति किसी भी हालत में नहीं दे सकते|

पत्नी तथा सोसाइटी के सदस्यों की बात सुनकर चंद्रप्रकाश दुःखी हो जाता है। वह घर लौटते समय सड़क के दोनों ओर सर्दी के मारे काँपते बच्चों को देखता है। वह महसूस करता है कि उनके बदन पर शीत-लहर का कितना भयंकर प्रभाव हो रहा है। वह उन्हें सौ रुपये देना चाहता है, फिर सोचता है- क्या सौ रुपये से उनकी समस्या हल हो जाएगी? नहीं! इस प्रकार उन बेघर लोगों की चाहते हुए भी, मदद नहीं कर सका।

शीत लहर Summary in Kannada

शीत लहर Summary in Kannada 1
शीत लहर Summary in Kannada 2

शीत लहर Summary in English

Jaiprakash Kardam is one of the respected Dalit writers. Most of his stories revolve around the problems faced by Dalits. The present story is one such. The story describes the pitiable state of those poor and homeless people who have to live a hellish life on the footpaths of Delhi in the cold and harsh winter months. This story also gives us a touching description of the uncaring attitude of the ‘genteel’ (upper-class) society towards the poor and downtrodden.

Chandraprakash lived in Delhi and was an officer of the Central government. He lived with his family in the government residential quarters. With the help of a loan from the bank, he had purchased a flat in Dwaraka Colony, which was quite far from his office. Therefore, instead of staying in his own home, he stayed with his family in the government quarters. He wished to rent out his flat to some good person.

Every month, Chandraprakash along with his wife would visit and inspect the flat. He would also pay the maintenance charges of 1,000 rupees for the flat, to the society’s office. It was the month of January. That year, Delhi was experiencing unusually rigid cold. Everyone was shivering due to the extremely cold weather. Chandraprakash, on his way to his flat, had seen with his own eyes, the poor children and the destitute old people sitting on the roadside, shivering from the cold. Looking at them, his heart melted. Chandraprakash told his wife that those poor people were really very unfortunate because they had no roof over them no clothes to wear, nor food to eat. His wife answered indifferently, that those people were lazy and did not want to work. She asked why they did not do any work. She felt that there was no need to look at those people with mercy or generosity. Chandraprakash listened to his wife’s words silently.

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Chandraprakash and his wife reached their flat. He saw that pigeons had built their nests inside his flat. The flat was very dirty. He began to think about the thousands of people who were homeless and had no option but to live on the streets in a pitiable condition while the pigeons were leading a peaceful life inside hiş flat. Chandraprakash thought that he could give his empty flat for a few days to those homeless people to live in for a few days. When he told his wife that he was thinking of giving his flat to the homeless people for a few days, she refused point-blank. Even the members of the housing society were of the opinion that it would not be right to allow homeless, illiterate people to live among the educated and decent members of society. The members of the housing society refused to give him permission for this under any circumstances.

Chandraprakash was saddened by the words of his wife and the housing society members. While returning, he observed the poor children on the streets, shivering from the cold. He sympathized with them. He felt the horrific effects that the cold wave’ was having on the bodies of these young children. He wanted to give a hundred rupee note to the children but then thought will hundred rupees solve the problems of these children? No! Thus, even though he wanted to help the homeless people living on the street, he was unable to do so.

कठिन शब्दार्थः

  • आवास – निवास;
  • राहत – सुख, आनंद;
  • अलाव – जाडे में तापने के लिए लगाई हुई आग;
  • विवशता – लाचारी, मजबूरी;
  • जिल्लत – अनादर, अपमान;
  • तवज्जों देना – ध्यान देना;
  • क्षोभ – दुःख;
  • सुरसा – एक राक्षसी का नाम।
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